यीशु क्यों मारा गया और जिलाया गया

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By John Piper About The Gospel
Part of the series Romans: The Greatest Letter Ever Written

Translation by Desiring God


Romans 4:22–25

इस कारण, यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया। 23 और यह वचन, कि विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया, न केवल उसी के लिये लिखा गया। 24 वरन् हमारे लिये भी जिन के लिये विश्वास धार्मिकता गिना जाएगा, अर्थात् हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। 25 वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया।।

अनुक्रम

आगामी सप्ताह के लिए तीन प्रष्न

मैंने आरम्भिक रूप से इरादा किया था कि इन चार छोटी आयतों, 22-25 पर, एक संदेश का उपदेश दूँ। लेकिन जैसे-जैसे मैंने उन पर विचार किया, विशेष रूप से प्रभु-भोज-रविवार के सम्बन्ध में, और विशेष रूप से इस अध्याय के अन्त में एक प्रकार के चरमोत्कर्ष पर आने के दृष्टिकोण से, मैंने सोचा कि इस महान मूल-पाठ पर हमें दो रविवार खर्च करना चाहिए। यहाँ वह प्रश्न हैं जो मैं उठाना चाहता हूँ, एक आज और तीन आगामी रविवार को।

1) विश्वास, इब्राहीम के लिये और हमारे लिये क्यों धार्मिकता गिना जाता है ? पद 22 के आरम्भ में ‘‘इस कारण’’ का क्या अर्थ है: ‘‘इस कारण, यह (विश्वासद) उसके (इब्राहीम के) लिये धार्मिकता गिना गया।’’

2) इब्राहीम और हमारे लिए किस प्रकार का विश्वास धार्मिकता गिना जाता है ? क्या यह विश्वास का पहला कृत्य था जब परमेश्वर ने इब्राहीम से सर्वप्रथम बात की और उसे कसदियों के ऊर को छोड़ने के लिए कहा, अथवा उत्पत्ति 15: 6 का विश्वास, जब परमेश्वर ने इब्राहीम के वंश को तारों के समान बनाने की प्रतिज्ञा दी, अथवा उत्पत्ति 17 का विश्वास जब परमेश्वर ने उसे उसकी उम्र और सारा के बाँझपन के बावजूद अगले वर्ष में एक पुत्र की प्रतिज्ञा दी, अथवा उत्पत्ति 22 का विश्वास, जब इब्राहीम ने अपने पुत्र इसहाक को भेंट चढ़ाया ? क्या हम विश्वास की प्रथम झिलमिलाहट से ही धर्मी ठहराये जाते हैं या आजीवन विश्वास के द्वारा ?

3) इब्राहीम और हमारे लिए विश्वास किस प्रकार गिना जाता है ? क्या विश्वास को धार्मिकता के रूप में गिने जाने का अर्थ है कि विश्वास स्वयं ही धार्मिकता का प्रकार है जो हम निष्पादित करते हैं और परमेश्वर उसे धर्मी ठहराने के लिए पर्याप्त गिनता है -- मानो कि धर्मी ठहराये जाने की कीमत पचास लाख डॉलर हो और मैं केवल दस लाख डॉलर ला पाता हूँ और इस कारण परमेश्वर दया के साथ कहता है कि वह मेरे दस लाख को पचास लाख गिनेगा और बाकी को रद्द कर देगा ? अथवा क्या धार्मिकता वास्तव में, मसीह में मुझे परमेश्वर की स्वयँ की धार्मिकता ओढ़ाया जाना है, और यदि ऐसा है तो, यह कहने का क्या अर्थ है कि विश्वास को धार्मिकता गिना जाता है ?

वो सब आगामी सप्ताह।

धर्मी ठहराये जाने के लिए हमें किस पर अथवा क्या विश्वास करना चाहिए ?

मैं क्या चाहता हूँ कि जिस पर हम इस सप्ताह ध्यान केन्द्रित करें, वो यह है: धर्मी ठहराये जाने के लिए हमें किस पर और क्या विश्वास करना चाहिए ? अतः हम इसे पद 24 के मध्य से आरम्भ करते हैं। पद 23-24 कहते हैं कि इसका कारण कि उत्पत्ति 15: 6 में लिखा गया था कि इब्राहीम का विश्वास धार्मिकता गिना गया, हमारे लिए था, मात्र उस के लिए नहीं। ‘‘और यह वचन, कि विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना गया, न केवल उसी के लिये लिखा गया। वरन् हमारे लिये भी।’’ इसे खो मत दीजिये। यहाँ पर यीशु मसीह का प्रेरित हमें बता रहा है कि परमेश्वर की दृष्टि में हम थे जब ‘उसने’ मूसा को ये शब्द लिखने को प्रेरित किया, ‘‘इस बात को उसके लेखे में धार्मिकता गिना।’’ परमेश्वर चाहता है कि आप इसे एकदम व्यक्तिगत रूप से लें। ‘वह’ चाहता है कि आप इसे पढ़ें, और इसे सुनें और जानें कि आप को एकदम व्यक्तिगत रूप से सम्बोधित किया जा रहा है।

परमेश्वर अभी आप से कह रहा है: ‘‘विश्वास, तुम्हें मेरे साथ ठीक कर देगा। मेरा भरोसा करो। मैं तुम्हारे विश्वास को धार्मिकता गिनूँगा।’’ क्या आप ‘उसे’ सुन सकते हैं ? ‘‘मेरा विश्वास करो। मुझमें विश्राम करो। मुझ पर टिकाव लो। मुझे समझो। ये बिल्कुल ठीक रहेगा। मेरे पास तुम्हारे लिये एक धार्मिकता है। तुम्हारे पास मेरे लिये बिल्कुल नहीं है। मेरे पास मेरी स्वयं की तुम्हारे लिये है। मेरा विश्वास करो। यह तुम्हारी धार्मिकता गिना जायेगा।’’

तब पद 24 के मध्य में वह हमें बताना आरम्भ करता है कि वो कौन है कि जिस पर हमें भरोसा/विश्वास करना है: ‘‘जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया।’’ यही ‘वो’ है जिस में हमें, धर्मी ठहराये जाने के लिए, विश्वास है। जिस परमेश्वर पर हम भरोसा करते हैं पौलुस ‘उसे’, जो ‘उसने’ किया है, उसके द्वारा पहचानता है। अतः जब वह कहता है, ‘‘विश्वास, (परमेश्वर द्वारा) धार्मिकता गिना जाता है,’’ और कहता है कि ये हमारे लिए लिखा गया जिन्हें विश्वास है, और फिर हमें बताता है कि परमेश्वर ने क्या किया है, तो हमें हमारे विश्वास का आधार और सार सीखना है।

आइये हम, परमेश्वर के बारे में तीन कथनों में, इसे संक्षेप में प्रस्तुत करें। 1) परमेश्वर, जिस पर हम विश्वास करते हैं, कल्पना से परे सामर्थ्य के कार्य करता है। 2) परमेश्वर, जिस पर हम विश्वास करते हैं, दयापूर्ण छुटकारा करता है। 3) परमेश्वर, जिस पर हम विश्वास करते हैं, विजयी न्याय का कार्य करता है। यह पूरा अध्याय, धर्मी ठहराये जाने के साधनों के बारे में रहा है, विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराये जाने के आधार के बारे में नहीं। परन्तु अब अध्याय के अंतिम वाक्य में, पौलुस, विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराये जाने के आधार की ओर लौटता है (जहाँ कि वह था, पीछे रोमियों 3: 24-26 में) धर्मी ठहराये जाने का आधार वो है जो परमेश्वर ने इतिहास में मसीह के कार्य में किया। धर्मी ठहराये जाने का साधन ये है कि हम उस महान् कार्य में विश्वास के द्वारा कैसे जुड़ जाते हैं। दोनों, विशाल रूप से महत्वपूर्ण हैं, किन्तु आधार, सबसे महत्वपूर्ण है।

जॉन मूरे, जो अब प्रभु के साथ है, लेकिन वेस्टमिनिस्टर सेमिनेरी में पढ़ाया करते थे, ने महान् छोटी पुस्तक लिखी है जिसका नाम ‘रिडम्पशन: अकम्पलिष्ड एण्ड एप्लाइड’, है। मैंने इसे लगभग 25 वर्ष पूर्व पढ़ा था। मेरी आकांक्षा है कि आप में से हर एक इसे पढ़ता। यह आपके विश्वास के वृक्ष में मजबूत तन्तु डाल देगा। वे दो शब्द, ‘अकम्पलिष्ड एण्ड एप्लाइड’, उस आधार और साधन की ओर संकेत करते हैं, जिनके बारे में मैं यहाँ बात कर रहा हूँ। रिडम्पशन अकम्पलिष्ड (छुटकारा /उद्धार पूरा किया गया)-- परमेश्वर ने मसीह में जो किया उसका वो आधार है; यह सम्पादित किया गया है (पूरा किया गया), हम से हट कर और हमारे बाहर।

रिडम्पशन एप्लाइड (छुटकारा/उद्धार, प्रयुक्त किया गया) -- यही वो है जो परमेश्वर, छुटकारे/उद्धार के महान सम्पादित काम से हमें जोड़ने के लिए करता है, कुछ ऐसा जो ‘वह’ हमारे साथ और हमारे अन्दर करता है। पौलुस इस अध्याय का अन्त, सम्पादित छुटकारे-आधार के बारे में, एक मजबूत कथन के साथ करता है, जो शेष सम्पूर्ण अध्याय की नींव है, जो विश्वास के द्वारा छुटकारे के प्रयुक्त किये जाने के बारे में रहा है। ‘वो’ एक जिस पर हम विश्वास करते हैं, ‘वो’ है जिसने इससे पूर्व कि हम अस्तित्व में आये, हमारे लिए छुटकारा (उद्धार) सम्पादित (पूरा) किया। वो ‘वह’ है जिस की हम प्रतीति करते हैं, जिस पर हम भरोसा रखते हैं, जिस में हम अपना विश्वास रखते हैं।

अतः यह है वो जिसे हम बहुत सहजता से और संक्षिप्त में देखेंगे: ‘वह’ वो है जो कल्पना से परे सामर्थ्य के काम करता है, दयापूर्ण छुटकारा (या उद्धार) और जयवन्त न्याय करता है। आइये इन्हें हम एक-एक कर के लें और मूल-पाठ में इन्हें देखें और अपने मस्तिष्कों और अपने हृदयों में सुरक्षित रखें।

1) हम उस ‘एक’ पर भरोसा रखते हैं जो कल्पनातीत सामर्थ्य के काम करता है

पद 24 का द्वितीय खण्ड कहता है कि ‘‘हम उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया ।’’ यीशु के पुनरुत्थान को प्रथम स्थान में रखने का तात्पर्य यह है कि यह उस सामर्थ्य से जुड़ जाता है जो पद 17 में इसहाक को जन्म देने में लगी। पद 17 में उन शब्दों को पुनः देखिये: ‘‘ . . . परमेश्वर . . . जिस पर उस (इब्राहीम) ने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसे लेता है, कि मानो वे हैं।’’ इब्राहीम ने उस ‘एक’ पर विश्वास किया जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसे लेता है, कि मानो वे हैं। इब्राहीम का ध्यान केन्द्रित था परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर कि वह इसहाक को जन्म दे, जब इब्राहीम 100 साल का बूढ़ा था और उसकी पत्नी बाँझ थी। ये असम्भव था। लेकिन इसी ने इब्राहीम के विश्वास को उदाहरण बना दिया। पद 19: ‘‘और वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ।’’

अतः अब, पौलुस कहता है, आज हम इसी परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, और वो विश्वास जिसे परमेश्वर धार्मिकता के लिए गिनता या मानता है, एक ऐसे परमेश्वर में विश्वास है जो मृतकों को जिलाता है, यथा, हमारे प्रभु यीशु मसीह को। यही है जिस पर हम विश्वास करते हैं, ‘वह’ जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया।

मैं इसे ‘‘कल्पनातीत (कल्पना से परे)’’ सामर्थ्य कहता हूँ, इस कारण नहीं कि आप इसे समझ नहीं पायेंगे, अपितु इस कारण कि हम एक ऐसी शताब्दि के अन्त की ओर आ रहे हैं जो प्रकृतिवाद - एक दृष्टिकोण, से चिन्हित की गई है, या एक विश्वास, कि जो प्रकृति का हिस्सा नहीं है, वो कोई वास्तविकता नहीं है - वो विश्वास कि कहीं कोई अलौकिक वास्तविकता नहीं है। वे कहते हैं, यह कल्पनातीत है। प्रकृतिवादी विकास-का-सिद्धान्त, इस विश्वास का सर्वाधिक व्यापक रूप है - प्रकृति के बाहर से एक अलौकिक सृष्टिकर्ता में विश्वास बिना, सभी चीजों के उद्गम को समझाने का एक प्रयास।

लेकिन इतिहास अध्ययन का एक प्रकृतिवादी तरीका भी इस शताब्दि में व्यापक रहा है। बाइबल शास्त्रीय अध्ययनों में ये विश्वास विध्वंसक है। इस विश्वास के सर्वाधिक प्रसिद्ध कथनों में से एक था, रूडाँल्फ बल्टमैन द्वारा दिया गया, जिसने कहा, ‘‘एक ऐतिहासिक तथ्य जिसमें मृतकों में से जी उठना सम्मिलित है, पूर्णतः कल्पनातीत (कल्पना से परे) है’’(कार्ल एफ. एच. हेनरी की पुस्तक ‘गॉड, रेवेलेशन, एण्ड अथॉरिटी,’ चतुर्थ ग्रन्थ, पृ. 333 में उद्धृत, व्हीटन: क्रासवे बुक्स, 1999, मूल 1979)। यह वहाँ है जहाँ मैं कल्पनातीत शब्द पा रहा हूँ।

वो विश्वास जिसे परमेश्वर हमारे लिए धार्मिकता गिनता है, उस ‘एक’ में विश्वास है जो कल्पनतीत सामर्थ्य के काम करता है। ‘वह’ ठीक वो करता है जिसे ‘बल्टमैन ‘‘कल्पनातीत’’ कहता है - ‘वह’ मृतकों को जिलाता है। ‘वह’ वो करता है जिसे लोग कहते हैं कि नहीं किया जा सकता। ‘उसने’ 90 साल की एक बूढ़ी स्त्री के गर्भ से इसहाक को उत्पन्न किया। और ‘उसने’ यीशु मसीह को तीन दिन बाद कब्र में से बाहर निकाला और उसे विष्व का ‘प्रभु’ बनाया। इस तरह परमेश्वर हर एक प्रतिज्ञा को पूरी कर सकता है। इसलिए हम ‘उस’ पर विश्वास करते हैं।

2) हम उस ‘एक’ पर विश्वास करते हैं जो दयापूर्ण छुटकारा सम्पन्न करता है

पद 25 के प्रथम-अर्ध भाग पर ध्यान दीजिये: ‘‘वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया।’’ मुख्य बात यहाँ देखने की ये है कि उस एक की मृत्यु जिसे परमेश्वर ने जिलाया, ऐसी मृत्यु है जिसकी योजना बनायी गई थी। परमेश्वर, ‘उसकी’ कल्पनातीत सामर्थ्य को मात्र प्रदर्शित नहीं करना चाहता था कि किसी घात किये गए व्यक्ति को ढूँढे़ कि उसे मुर्दों में से जिलाये। परमेश्वर ने स्वयँ इस मृत्यु की योजना बनायी थी और एक उद्देश्य के लिए बनायी थी।

आप इसे पद 25 (प्रथम-अर्ध) के दो प्रमुख वाक्यांशों में देख सकते हैं:‘‘(1) ‘वह’ जो पकड़वाया गया (2)हमारे अपराधों के लिए। “यीशु’’ पकड़वाया गया - किसके द्वारा ? सैनिकों द्वारा ? पीलातुस द्वारा ? हेरोदेस द्वारा ? यहूदी भीड़ के द्वारा ? अन्तिम रूप से, इनमें से किसी के द्वारा नहीं, क्योंकि ये कहता है, कि ‘वह’ ‘‘हमारे अपराधों के लिए’’ पकड़वाया गया। सैनिकों और पीलातुस और हेरोदेस और यहूदियों ने यीशु को ‘‘हमारे अपराधों के लिए’’ नहीं पकड़वाया।

प्रेरितों के काम 2: 23, एक स्पष्ट और सटीक उत्तर देता है: ‘‘उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई मनसा और होनहार के ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया।’’ परमेश्वर ने उसे पकड़वाया और मृत्यु को सौंप दिया। रोमियों 8: 3 कहता है, ‘‘परमेश्वर ने . . . अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप . . . के लिए भेजा।’’ रोमियों 8:32 कहता है: ‘‘जिस ने(परमेश्वर ने) अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिए दे दिया।’’ अतः यीशु ख्रीष्ट की मृत्यु, परमेश्वर की योजना के द्वारा थी। परमेश्वर ने ‘उसके’ मृत्यु की योजना बनायी। ‘वह’ यूँ ही नहीं मरा। ‘वह’ परमेश्वर द्वारा मृत्यु को सौंपा गया।

और उस योजना का एक ध्येय था (पद 25, प्रथम-अर्द्ध): ‘‘हमारे अपराधों के लिये।’’ परमेश्वर की योजना हमारे अपराधों से बर्ताव करने की थी। ‘वह’ हमारे अपराधों के बारे में कुछ करना चाहता था। क्या ? ‘वह’ एक प्रतिस्थापी मृत्यु उपलब्ध करना चाहता था ताकि हमें हमारे अपराधों के लिए मरना न पड़े। और एकमात्र मृत्यु जो ऐसा कर सकती थी, वो थी ‘उसके’ ‘पुत्र’ की मृत्यु। अतः रोमियों 8: 3 कहता है, ‘‘परमेश्वर ने . . . अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिए भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी।’’ अतः हमारे अपराध झाड़ कर क़ालीन के नीचे छुपा नहीं दिये गए। उन्हें अनदेखा नहीं किया गया। उन पर दण्डाज्ञा दी गई। वे एक प्राणदण्ड ले आते हैं। लेकिन हमारा नहीं। ख्रीष्ट (मसीह) का।

इस तरीके से हम मसीह की मृत्यु के द्वारा छुड़ाये गए हैं। अर्थात्, हमने अपने पापों से उद्धार पाया है। हम नरक के दण्ड से बचा लिये गए हैं। हम परमेश्वर के न्याय से दाम देकर छुड़ाये गए हैं। और यह सब छुटकारा हम पाने की पात्रता नहीं रखते थे। हम मरने और नरक में जाने के और परमेश्वर के न्याय को सहने के पात्र हैं। किन्तु ये एक दयापूर्ण छुटकारा है। यह वो परमेश्वर है जिसपर हम दोषमुक्त ठहराये जाने के लिए विश्वास करते हैं - वो परमेश्वर जो एक दयापूर्ण छुटकारे का काम करता है। ‘उसने’ हमें हमारे अपराधों से बचाने के लिए, अपने पुत्र की मृत्यु के द्वारा योजना बनायी।

3) अन्त में, हम उस ‘एक’ पर विश्वास करते हैं जो एक विजयी न्याय निष्पादित करता है

हम उस ‘एक’ पर विश्वास करते हैं जो कल्पना से परे सामर्थ्य निष्पादित करता है, दयापूर्ण छुटकारा, और अब विजयी न्याय सम्पन्न करता है। उस बात से मेरा क्या अर्थ है, और मैं इसे कहाँ पाता हूँ। मैं इसे पद 25 के अंतिम भाग से पाता हूँ। वो परमेश्वर कौन है जिस पर हम विश्वास रखते हैं ? ‘वह’ वो ‘एक’ है जिसने यीशु को ‘‘हमारे धर्मी ठहरने के लिये’’ जिलाया। मैं उसे इस अर्थ में लेता हूँ कि जब यीशु हमारे अपराधों के लिए मरा, हमारी क्षमा और हमें धर्मी ठहराने के लिए, एक पूर्ण और पर्याप्त दाम चुकाया गया। इसलिए, मसीह को कब्र में छोड़ देना अन्यायपूर्ण रहा होगा, क्योंकि ‘उसने’ हमारे पाप के लिए इतनी पूर्णता से दाम चुकाया था। अतः परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया ताकि मसीह के प्रायश्चित और आज्ञाकारिता की सिद्धता को न्यायसंगत प्रमाणित करे। यीशु का पुनरुत्थान, उद्धोषणा थी कि ‘उसने’ अपनी मृत्यु में जो सम्पादित किया (पूरा किया)वो त्रुटिरहित सफल था, यथा, हमें धर्मी ठहराये जाने को खरीदना।

हो सकता है कि हम इसे ऐसा कह सकते थे: जब मसीह मरा और हमारे अपराधों के लिए अपना लहू बहाया, उसने पापों के लिए प्रायश्चित किया जिसने उसे मार डाला। चूंकि वे पाप अब ढाँपे गये और दाम चुकाये गए हैं, कोई कारण नहीं है कि मसीह मृत रहा जावे। ‘उसकी’ मृत्यु केवल और केवल हमारे पापों का दाम चुकाने के लिए थी। जब उनका पूर्णता के साथ दाम चुका दिया गया, तब ‘उसकी’ मृत्यु के लिए कोई उचित कारण (आज्ञा-पत्र) अब और शेष न रहा। ‘उसे’ कब्र में रखे रहना अन्यायपूर्ण रहता। ‘वह’ कब्र में ठहर न सका, ‘‘यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता’’ (प्रेरित 2: 24)।

अतः वो परमेश्वर जिस पर हम विश्वास करते हैं ‘वह एक’ है जो विजयी न्याय निष्पादित (सम्पन्न) करता है। यीशु का पुनरुत्थान विजयी है क्योंकि यह मृत्यु पर जय पाता है। यह विजयी न्याय है क्योंकि न्याय ने माँग की कि यीशु मृतकों में से जिलाया जावे। ‘उसने’ पापों के लिए सिद्धता के साथ दाम चुकाया, यह था, वे पाप जो उसे मृत्यु तक ले आये। यदि पाप जो उसे मृत्यु तक ले आये--हमारे पाप--क्रूस पर सिद्धता के साथ और पूर्णतः दाम चुकाये जा चुके थे, तब मसीह की मृत्यु का एकमात्र कारण बीत चुका था। हमारा धर्मी ठहराया जाना पूर्णतः सुरक्षित कर लिया गया (जो विश्वास के द्वारा अब तक कार्यकारी नहीं हुआ, किन्तु सुरक्षित और दाम-चुकाया जा चुका था)। अतः ये अन्यायपूर्ण होता कि मसीह मृत रह जाए। ये एक बिना कारण का दण्ड होता। इसलिए, यह न्यायपूर्ण और उचित था कि परमेश्वर, मसीह को मृतकों में से जिलाये। यह विजयी न्याय था। (देखिये, इब्रानियों 13: 20)।

धर्मी ठहराये जाने के लिए हम किस पर विश्वास करें

अतः मैं उस प्रश्न के साथ समाप्त करता हूँ जो मैंने आरम्भ में उठाया था: धर्मी ठहराये जाने के लिए - परमेश्वर के साथ ठीक हो जाने के लिए, हमें किस पर अथवा क्या विश्वास करना चाहिए ? उत्तर है कि हमें परमेश्वर पर विश्वास रखना चाहिए – 1) कि ‘उसने’ अपने ‘पुत्र’ यीशु को मृतकों में से जिलाने में कल्पनातीत सामर्थ्य निष्पादित किया, 2) कि ‘उसने’ हमें हमारे अपराधों से बचाने के लिए ‘उसके’ पुत्र की मृत्यु की योजना बनाने में दयापूर्ण छुटकारा निष्पादित किया, और 3) कि ‘उसने’ यीशु को मृतकों में से जिलाने के द्वारा विजयी न्याय निष्पादित किया ताकि ये प्रदर्शित करें कि हमारे धर्मी ठहराये जाने का आधार, ‘उसके’ पुत्र की मृत्यु में, पूर्णतया उचित रीति से पूरा किया गया।

अतः आज ‘उस’ पर विश्वास कीजिये। अपना हृदय खोलिये और इस उद्धार की महिमा को ग्रहण कीजिये: कल्पनातीत सामर्थ्य, दयापूर्ण छुटकारा, विजयी न्याय। इस पर विश्वास कीजिये और परमेश्वर आपके विश्वास को धार्मिकता गिनेगा। आप ‘उसके’ साथ सुरक्षित रहेंगे। आपके पास एक धार्मिकता होगी, आपकी स्वयं की नहीं ; और खड़े होने के लिए एक अटल, सनातन चट्टान होगी।