¬आदम का प्राणघातक आज्ञाउल्लंघन और मसीह का विजयी आज्ञापालन
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
By John Piper
About Imputed & Original Sin
Part of the series Spectacular Sins and Their Global Purpose in the Glory of Christ
Translation by Desiring God
Romans 5:12–21
इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आयी, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिए कि सब ने पाप किया; 13 क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, परन्तु जहाँ व्यवस्था नहीं, वहाँ पाप गिना नहीं जाता। 14 तोभी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगों पर भी राज्य किया, जिन्होंने उस आदम के अपराध के समान जो उस आनेवाले का चिन्ह है, पाप न किया। 15 पर जैसी अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लोगों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ। 16 और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, 17 क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुतेरे अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ कि लोग धर्मी ठहरे। क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। 18 इसलिए जैसा आदम का एक अपराध सब मनुष्यों के लिए दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिए जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। 19 क्योंकि जैसे एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे। 20 और व्यवस्था बीच में आ गई, कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह उससे भी कहीं अधिक हुआ, 21 कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिए धर्मी ठहराते हुए राज्य करे।
यीशु सर्वोच्च है
इस श्रृंखला का एक उद्देश्य यह भी है कि हमारे मनों में इस सत्य को बैठाएँ कि यीशु मसीह इस विश्व में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है -परमेश्वर पिता या परमेश्वर पवित्र आत्मा से अधिक महत्वपूर्ण नहीं; वरन् उनके साथ, वह योग्यता, मनोहरता, बुद्धि, न्याय, प्रेम, और सामर्थ्य में समतुल्य है। वह अन्य व्यक्तियों से बढ़कर महत्वपूर्ण है –चाहे वे स्वर्गदूत हों या दुष्टात्माएँ, राजा या सैन्य अधिकारी या फिर वैज्ञानिक, कलाकार, दार्शनिक, खिलाड़ी, संगीततज्ञ या अभिनेता - जो कोई भी अतीत में हुए या वर्तमान में हैं या भविष्य में होंगे, उन सब में मसीह सर्वोच्च है।
सब कुछ मसीह के लिए - दुष्ट भी
इस श्रृंखला का अभिप्राय यह दिखाना भी है कि जो कुछ है -बुराई सहित -वह एक असीम पवित्र तथा सर्वज्ञानी परमेश्वर द्वारा ठहराया गया है कि मसीह की महिमा और तेज़ चमकें। हमारे बाइबल पाठन में कुछ लोगों ने अभी अभी नीतिवचन 16:4 पढा होगा, “यहोवा ने हर वस्तु को विशेष उद्देश्य के लिए रचा है, यहाँ तक कि दुष्ट को बुरे दिन के लिए ।” परमेश्वर ने यह उसके अपने रहस्यमय तरीके से किया है जो कि दुष्ट के दायित्व को सुरक्षित रखता है और उसके अपने हृदय की पापहीनता को। दो सप्ताह पूर्व हमने देखा था कि समस्त वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिए सृजी गई हैं (कुलुस्सियों 1:16)। और पौलुस कहता है, उसमें शामिल हैं, “सिंहासन,साम्राज्य, शासन अथवा अधिकार” जो कि क्रूस पर मसीह द्वारा हराए गए हैं। वे “बुरे दिन के लिए” बनाए गए थे। और उस दिन मसीह की सामर्थ्य और न्याय और क्रोध और प्रेम का प्रदर्शन हुआ था। आज नहीं तो कल उसके विरूद्ध प्रत्येक विद्रोह का विनाश होता है।
परमेश्वर जो वहाँ है
इस श्रंखला का लक्ष्य यह विश्वास भी दृढ़ करना है कि मसीहियत हमारे मनोवैज्ञानिक कुशलक्षेम के लिए बनाई गए विचारों, रीतियों या भावनाओं का एक संग्रह मात्र नहीं है। चाहे वे परमेश्वर द्वारा या मनुष्य द्वारा बनाए गए हों। मसीहियत यह नहीं है। मसीहियत इस दृढ़ विश्वास के साथ आरम्भ होती है कि परमेश्वर हमारे बाहर एक सच्चाई है। उसके विषय कोई विशेष विचार रखने के द्वारा हम उसे निर्मित नहीं करते हैं। जैसा कि फ्रान्सिस शेफ़र ने कहा, वह वहाँ उपस्थित परमेश्वर है। हम उसे नही बनाते हैं। वह हमें बनाता है। हम यह निर्णय नहीं लेते हैं कि वह कैसा होगा। वह निर्णय लेता है कि हम कैसे होंगे। उसने संसार बनाया, और वही इसे अर्थ प्रदान करता है, न कि वह अर्थ जो हम देते हैं। यदि हम इस संसार को वह अर्थ देते हैं जो कि उसके दिए अर्थ से भिन्न है तो हम भूखे हैं। और अन्त में हमारे जीवन संकट में पडे़ंगे। मसीहियत कोई खेल नहीं है, न ही कोई उपचार क्रिया है। इसके समस्त धर्म सिद्धान्त परमेश्वर जो है और इतिहास में उसने जो किया है, उस पर आधारित है। वे पक्के नथ्यों के समान हैं। परन्तु मसीहियत तथ्यों से बढ़कर है। इसमें विश्वास और आशा और प्रेम है। परन्तु ये हवा में नहीं हैं। ये परमेश्वर के सत्य की चट्टान पर देवदार के विशाल वृक्षों के समान बढ़ते हैं।
इस श्रृंखला में इसे अपने उद्देश्यों में से एक बनाने का मेरा कारण यह है कि क्योंकि मैं बाइबल से पूर्णतः आश्वस्त हूँ कि आपका अनन्त आनन्द, शक्ति और पवित्रता आपके विश्वास की रीढ़ की हड्डी में इस विश्व दर्शन की मज़बूत कोशिका को रखने पर निर्भर है। कायर विश्वदर्शन कायर मसीही बनाते हैं। और कायर मसीही आने वाले दिनों में नहीं बचेंगे। अन्तिम दिनों में जड़ रहित भावुकतावाद जो मसीहियत को एक उपचारीय विकल्प समझता है, मिटा दिया जाएगा। जो लोग स्थिर खड़े रहेंगे वे वो लोग होंगे जिन्होंने मसीह को अपना मूल, केन्द्र और लक्ष्य बनाकर उसकी सच्चाई की महान चट्टान पर अपने घर बनाए हैं।
आदम के पाप में यीशु की महिमा की योजना थी
आज हम प्रथम मनुष्य आदम, के उस अभूतपूर्व पाप पर ध्यान देंगे, और कि इसने कैसे मसीह यीशु के और अधिक शानदार पलट-वार के लिए मंच तैयार किया। आइए रोमियों 5:12-21 देखें। 2000 की गर्मी में हमने इन पदों पर अपना पाँच हपत्तों का समय बिताया। अब हम भिन्न बातों को इनमें देखेंगे।
मैं चाहता हूँ कि हम मसीह की महिमा पर उस मुख्य अभिप्राय के रूप में ध्यान केन्द्रित करें जो कि परमेश्वर के मन में था जब उसने आदम के पाप की योजना बनाई और होने दिया, और उसके साथ सारी मनुष्य जाति का पतन हुआ। पिछले सप्ताह मैंने जो कहा उसे याद करें। परमेश्वर जो कुछ होने देता है उसके पीछे कोई कारण होता है। और उसके कारण हमेशा असीम बुद्धिमत्तापूर्ण तथा उद्देश्यपूर्ण होते हैं। उस मनुष्य का पतन होने देना अवश्य नहीं था। वह इसे रोक सकता था,ठीक जिस रीति से वह शैतान के पतन को रोक सकता था। यह बात कि उसने इसे नहीं रोका यह अर्थ रखती है कि इसके पीछे उसका कोई कारण था, कोई उद्देश्य था और वह यूँ ही अपनी योजनाएँ नहीं बनाता है। वह समझ रखता है और हमेशा ही बुद्धिपूर्ण कार्य करता है। इसलिए, आदम के पाप और उसके साथ मनुष्य जाति के पाप में पतन और दुर्दशा ने परमेश्वर को विचलित नहीं किया और यह उसकी विस्तृत योजना का एक हिस्सा था कि मसीह यीशु की महिमा की परिपूर्णता का प्रदर्शन करें।
इस बात को बाइबल में सबसे स्पष्ट रूप से देखने का एक तरीका यह है -जिस पर अभी हम विस्तृत विचार नहीं करेंगे - कि उन अनुच्छेदों को देखें जहाँ सृष्टि रचना के पहले हम परमेश्वर के मन में पाप को पराजय करने वाले मसीह के बलिदान के विषय पढ़ते हैं। (विस्तृत विचार के लिए “मसीह का दु:खभोग तथा परमेश्वर की सर्वोपरिता ” सन्देश को देखें)। उदाहरण के लिए प्रकाशितवाक्य 13:8 में, यूहन्ना उस “प्रत्येक व्यक्ति के विषय लिखता है जिसका नाम उस मेमने के जीवन की पुस्तक में जो जगत की उत्पत्ति के समय घात किया गया, नहीं लिखा गया है।” अर्थत् जगत की उत्पत्ति के पहले ही “उस मेमने के जीवन की पुस्तक” थी। इसके पहले कि संसार की सृष्टि हुई, परमेश्वर ने यह योजना बनाई कि उसका पुत्र उन सब को उद्धार देने के लिए एक मेमने के समान घात किया जाएगा जिनके नाम इस पुस्तक में लिखे होंगे। हम इस प्रकार के अनेक पद देख सकते हैं (इफिसियों 1:4-5; 2 तीमुथियुस 1:9; तीतुस 1:1-2; 1 पतरस 1:20), कि बाइबल के अनुसार पाप के लिए मसीह के दु:ख उठाने और मृत्यु की योजना आदम के पाप करने के बाद नहीं, पहले बनाई गई थी। इसलिए, जब आदम ने पाप किया, परमेश्वर को इसमें आश्चर्य नहीं हुआ, परन्तु उसने इसे पहले से ही अपनी योजना का हिस्सा बनाया था - अर्थात् एक ऐसी योजना जो छुटकारे के इतिहास में उसके अद्भुत धीरज, अनुग्रह और न्याय को प्रकाशित करे, और तब, चर्मोत्कर्ष के रूप में, अपने पुत्र की उस महानता को प्रकट करे क्योंकि दूसरा आदम प्रथम आदम की अपेक्षा हर रीति से महान है।
अतः इस बार हम रोमियों 5:12-21 को यह ध्यान में रखते हुए देखेंगे कि आदम के शानदार पाप ने मसीह को महिमा देने के परमेश्वर के अभिप्रायों को विफल नहीं किया; वरन् उन्हें पूरा करने में सहायता की। इन पदों को हम इस रीति से देखेंगे। यहाँ मसीह के विषय पाँच स्पष्ट सन्दर्भ हैं। उनमें से एक मसीह तथा आदम के विषय पौलुस के विचार को रूप देता है। और शेष यह दिखाते हैं कि मसीह कैसे आदम से बड़ा है। उन में से दो बहुत मिलते जुलते हैं, अतः हम उन्हें एक साथ रख कर देखेंगे, जिसका अर्थ हुआ कि हम मसीह की श्रेष्ठता के तीन आयामों को देखेंगे।
यीशु, “जो आने वाला था”
अतः सर्वप्रथम हम यह देखेंगे कि पद 14 में मसीह का किस रीति से उल्लेख किया गया है और सन्दर्भ के लिए पद 12-13 पढ़ेंगे: “12 इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आयी, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिए कि सब ने पाप किया; 13 क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, परन्तु जहाँ व्यवस्था नहीं, वहाँ पाप गिना नहीं जाता। 14 तौभी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगों पर भी राज्य किया, जिन्होंने उस आदम के अपराध के समान जो उस आनेवाले का चिन्ह है, पाप न किया।” यहाँ मसीह का उल्लेख है – “जो आने वाला था ।”
एक शेष अनुच्छेद में पौलुस जो सोच रहा है उसके लिए पद 14 मार्ग प्रशस्त करता है। आदम को उसका “प्रतीक ”कहा गया है जो आने वाला था, अर्थात् मसीह का प्रतीक। सबसे स्पष्ट बात पर सबसे पहले ध्यान दें: मसीह “आने वाला था ।”आरम्भ से ही मसीह “आने वाला” था। पौलुस यह स्पष्ट करता है कि मसीह कोई अनुबोध नहीं था। पौलुस यह नहीं कहता है कि मसीह को आदम की प्रतिकृति के रूप में कल्पित किया गया था। वह कहता है कि आदम मसीह का प्रतीक था। परमेश्वर ने आदम के साथ उस रीति से व्यवहार किया जो उसे वह प्रतीक बनाता जो उसने अपने पुत्र को महिमा देने की योजना में रखा था। एक प्रतीक उस की पूर्वप्रतिछाया होना है जो कि बाद में आएगा और उस प्रतीक के समान होगा - बस उस से महान होगा। अतः परमेश्वर ने आदम के साथ इस रीति से व्यवहार किया जो उसे मसीह का एक प्रतीक नाता।
अब और ध्यान से देखें कि पौलुस अपने विचारों को इस प्रवाह में ठीक किस स्थान पर यह कहना उचित समझता है कि आदम मसीह का प्रतीक है। पद 14 : “तथापि मृत्यु ने आदम से लेकर मूसा तक शासन किया, उन पर भी जिन्होंने आदम के अपराध के समान पाप नहीं किया था, आदम उसका प्रतीक था जो आने वाला था।” यह कहने के पश्चात कि जिन्होंने आदम के अपराध के समान पाप नहीं किया था उन्होंने फिर भी उस दण्ड को सहा जो आदम ने सहा, पौलुस हमें यह बताता है कि आदम मसीह का एक प्रतीक है। पौलुस ने इसी बिन्दु पर यह क्यों कहा कि आदम मसीह का प्रतीक था?
यीशु हमारा प्रमुख प्रतिनिधि है।
क्योंकि पौलुस ने जो अभी-अभी कहा वह इस बात का सार तत्व है कि मसीह और आदम कैसे एक समान और भिन्न हैं। समानान्तर ये हैं - वे लोग जिनके अपराध आदम के पाप के समान नहीं थे वे आदम के समान ही मरे। क्यों? क्योंकि वे आदम से जुड़े हुए थे। वह उनकी मानव जाति का प्रमुख प्रतिनिधि था और उसका पाप उनका पाप गिना गया क्योंकि वे उसकी सन्तान थे। यही वह मुख्य कारण है कि आदम को मसीह का प्रतीक कहा गया है - क्योंकि हमारी आज्ञाकारिता मसीह की आज्ञाकारिता के समान नहीं है और फिर भी हमें मसीह के साथ अनन्त जीवन मिला है। क्यों? क्योंकि हम विश्वास के द्वारा मसीह से जुड़े हैं। वह इस नई मानव जाति का प्रमुख प्रतिनिधि है और उसकी धार्मिकता हमारी धार्मिकता गिनी गई है। क्योंकि हम उस से जुड़ गए हैं। (तुलना करें, रोमियों 6:5)।
आदम को मसीह का प्रतीक कहने में कुछ समानताएँ हैं -
आदम > आदम का पाप > उसमें मानवजाति दण्ड योग्य ठहराई गई > अनन्त मृत्यु
मसीह > मसीह की धार्मिकता > उसमें नई मनुष्यजाति धर्मी ठहराई गई > अनन्त जीवन
शेष अनुच्छेद यह स्पष्ट करता है कि मसीह और उसका उद्धार का कार्य आदम और उसके विनाशकारी कार्य से कितना अधिक महान है। मैंने आदम में जो कहा उसे ध्यान में रखिए। यहाँ पर हम उस परमेश्वर द्वारा उन सच्चाइयों के प्रकाशन को देख रहे हैं जो कि इस संसार को परिभाषित करती हैं, जिस में प्रत्येक व्यक्ति रह रहा है। इस अनुच्छेद में इस पृथ्वी पर का प्रत्येक व्यक्ति शामिल है क्योंकि आदम सम्पूर्ण मनुष्य जाति का पिता था। इसलिए, भारत में या किसी भी देश में किसी भी मूल के व्यक्ति से आप मिलते हैं वह इस अनुच्छेद में कहीं बातों का सामना कर रहा है। आदम में मृत्यु या मसीह में जीवन। यह एक सार्वभौमिक बाइबल पाठ है। इसे स्मरण रखें। जिस किसी व्यक्ति से आप जब कभी मिलेंगे उसकी यह सच्चाई है। कायर विश्व दर्शन कायर मसीही उत्पन्न करते हैं। यह कोई कायर विश्व दर्शन नहीं है। यह सम्पूर्ण इतिहास में और सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैला हुआ है। यह संसार के प्रत्येक व्यक्ति पर और प्रत्येक मुख्य समाचार पर गहरा प्रभाव डालता है।
मसीह की श्रेष्ठता का गुणगान करना
आईए, अब उन तीन बातों को देखें जिसमें पौलुस आदम और उसके कार्य से बढ़कर मसीह और उसके कार्य की श्रेष्ठता का गुणगान करता है। इन्हें तीन वाक्यांशों में रखा जा सकता है – 1. अनुग्रह की प्रचुरता, 2. पूर्ण आज्ञापालन, 3. जीवन का राज्य।
1) अनुग्रह की प्रचुरता
पहला पद 15 और अनुग्रह की प्रचुरता। “परन्तु वरदान (अर्थात् धार्मिकता का मुफ्त दान, पद 17) अपराध के समान नहीं है। क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण अनेक मर गए, तब उस से कहीं अधिक परमेश्वर का अनुग्रह, तथा एक मनुष्य के अर्थात्; यीशु मसीह के अनुग्रह का दान बहुतों को प्रचुरता से मिला ।” यहाँ मुद्दा यह है कि परमेश्वर का अनुग्रह आदम के अपराध से अधिक शक्तिशाली है। यही वह शब्द “बहुत कुछ” दर्शाता है: “बहुत कुछ परमेश्वर का अनुग्रह होता है… बहुतों के लिये।” यदि मनुष्य के अपराध मृत्यु को लाया तो परमेश्वर का अनुग्रह कितना जीवन लाएगा।
परन्तु पौलुस और स्पष्ट कहता है। परमेश्वर का अनुग्रह “एक मनुष्य, अर्थात् यीशु मसीह का अनुग्रह” है। “तब उस से कहीं अधिक परमेश्वर का अनुग्रह, तथा एक मनुष्य के अर्थात्, यीशु मसीह के अनुग्रह का दान बहुतों को प्रचुरता से मिला ।” ये दो अलग अलग अनुग्रह नहीं है। “एक मनुष्य, अर्थात् यीशु मसीह के अनुग्रह का दान ” परमेश्वर के अनुग्रह का देहधारण है। पौलुस इसके विषय में इसी रीति से कहता है, उदाहरण के लिए, तीतुस 2:11 में, “क्योंकि परमेश्वर अनुग्रह तो सब मनुष्यों के उद्धार के लिए (मसीह में) प्रकट हुआ है।” और 2 तीमुथियुस 1:9 में, “और अनुग्रह के अनुसार जो मसीह यीशु में अनन्त काल से हम पर हुआ है।” अतः जो अनुग्रह मसीह में है वह परमेश्वर का अनुग्रह है।
यह अनुग्रह सर्वोपरि अनुग्रह है। यह अपने मार्ग में आने वाली हर बात पर विजयी होता है। थोड़ी ही देर में हम देखेंगे कि इसके पास विश्व के राजा की शक्ति है। यह राज्य करने वाला अनुग्रह है। आदम से बढ़कर मसीह की श्रेष्ठता का यह पहला गुणगान है। जब एक मनुष्य आदम का अपराध और एक मनुष्य मसीह यीशु का अनुग्रह आपस में मिलते हैं, तो आदम का अपराध पराजित होता है और मसीह का अनुग्रह विजयी। जो मसीह के लोग हैं उनके लिए यह बड़ा शुभ सन्देश है।
2) पूर्ण आज्ञापालन
दूसरा, जिस रीति से मसीह का अनुग्रह आदाम के अपराध तथा मृत्यु पर विजयी होता है पौलुस उसका गुणगान करता है, अर्थात् मसीह के आज्ञापालन का। पद 19, “जैसे एक मनुष्य के आज्ञा-उल्लंघन से अनेक पापी ठहराए गए, वैसे ही एक मनुष्य की आज्ञाकारिता से अनेक मनुष्य धर्मी ठहराए जाएँगे।” अतः एक मनुष्य, मसीह यीशु, का अनुग्रह उसे पाप करने से बचाता है, उसे मृत्यु तक, हाँ, क्रूस की मृत्यु तक आज्ञाकारी बनाए रखता है। (फिलिप्पियों 2:8) - जिससे कि वह जो उसके साथ विश्वास द्वारा सम्बन्ध रखते हैं उनकी ओर से पिता के प्रति निर्दोष तथा पूर्ण आज्ञाकारिता रखता है। मसीह पूर्णतः सफल हुआ। आदम पाप तथा मृत्यु का स्त्रोत था। मसीह आज्ञापालन तथा जीवन का स्त्रोत था।
मसीह आदम के समान है जो कि मसीह का प्रतीक था - दोनों, एक पुरानी तथा एक नई मनुष्यजाति के प्रमुख प्रतिनिधि हैं। परमेश्वर मनुष्यता के प्रति आदम की असफलता को आरोपित करता है और परमेश्वर मनुष्यता के प्रति मसीह की सफलता को अध्यारोपित करता है, जिसके कारण ये दो मानवताएँ अपने अपने प्रमुखों से जुड़ी हुई हैं। मसीह की महान श्रेष्ठता यह है कि वह न केवल आज्ञाकारिता में पूर्ण सफल होता है, परन्तु वह यह इस रीति से करता है कि उसके आज्ञापालन के कारण करोड़ों लोग धर्मी गिने जाते हैं। क्या आप केवल आदम से सम्बन्ध रखते हैं? क्या आप मृत्यु के बन्धन में पड़ी प्रथम मानवता के अंग हैं? या कि आप मसीह से भी जुड़ गए हैं, और उस नई मानवता के अंग बन गए हैं जिन्हें अनन्त जीवन की निश्चयता है।
3) जीवन का राज्य
तीसरा, पौलुस न केवल मसीह के अनुग्रह की प्रचुरता और मसीह के पूर्ण आज्ञापालन का गुणगान करता है, परन्तु जीवन के राज्य का भी। अनुग्रह मसीह के आज्ञापालन से होकर अनन्त जीवन की विजय तक पहूँचता है। पद 21, “कि जैसे पाप ने मृत्यु में राज्य किया वैसे ही अनुग्रह भी धार्मिकता से अनन्त जीवन के लिए हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा राज्य करे ।” अनुग्रह धार्मिकता द्वारा (अर्थात् मसीह की सिद्ध धार्मिकता द्वारा) अनन्त जीवन के चर्मोत्कर्ष तक राज्य करता है - और यह सब कुछ “हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा” है।
या एक बार फिर पद 17 में इसी सन्देश को हम पाते हैं, “जब एक ही मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा शासन किया, इस से बढ़कर वे जो अनुग्रह और धार्मिकता के दान को प्रचुरता से पाते हैं, उस एक ही यीशु मसीह के द्वारा जीवन में राज्य करेंगे ।” उसी के समान: अनुग्रह धार्मिकता के दान के द्वारा जीवन की विजय देता है, और यह सब कुछ मसीह यीशु के द्वारा।
ऊपर मैंने कहा है कि मसीह में परमेश्वर के जिस अनुग्रह का पौलुस इन पदों में उल्लेख करता है वह सर्वोपरि अनुग्रह है। यहाँ आप इसे राज्य शब्द में देखते हैं। मृत्यु का मनुष्य पर एक सार्वभौम अधिकार है और यह सब पर राज्य करती है। सब मरते हैं। परन्तु अनुग्रह पाप और मृत्यु पर विजयी होता है। यह जीवन में राज्य करता है, उन पर भी जो कभी मरे हुए थे। यह सर्वोपरि अनुग्रह है।
यीशु की शानदार आज्ञाकारिता
यह मसीह की महान महिमा है - वह प्रथम आदम से कहीं बढ़कर श्रेष्ठ है। आदम का शानदार पाप मसीह के शानदार अनुग्रह और आज्ञाकारिता और अनन्त जीवन के दान जितना महान नहीं है। वास्तव में, अपनी सिद्ध धार्मिकता में, आरम्भ ही से परमेश्वर की योजना यह थी कि मानव जाति के प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में आदम एक नई मानवजाति के प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में मसीह का एक प्रतीक है। उसकी योजना थी कि इस तुलना में वैषम्य के द्वारा, मसीह की महिमा और भी अधिक तेज़ चमके।
पद 17 इस बात को आपके समक्ष बहुत व्यक्तिगत रीति से और अति अनिवार्य रूप से रखता है। आज आप कहाँ खड़े हैं? “जब एक ही मनुष्य के अपराध के कारण, मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा शासन किया, इस से बढ़कर वे जो अनुग्रह और धार्मिकता के दान को प्रचुरता से पाते हैं, उस एक ही यीशु मसीह के द्वारा जीवन में राज्य करेंगे ।” इन शब्दों पर व्यक्तिगत रीति से ध्यान दें, “वे जो अनुग्रह और धार्मिकता के दान को प्रचुरता से पाते हैं।”
पापियों के लिए कीमती शब्द
पापियों के लिए ये शब्द कीमती हैं - अनुग्रह मुफ्त है, दान मुफ्त है, मसीह की धार्मिकता मुफ्त है। क्या आप इसे अपने जीवन की आशा तथा धन के रूप में ग्रहण करेंगे? यदि आप करेंगे तो आप “उस एक ही यीशु मसीह के द्वारा जीवन में राज्य करेंगे।” अभी ग्रहण कीजिए। बपतिस्मे द्वारा गवाही दीजिए। और मसीह के लोगों में से एक बनिए।