विवाह: परमेश्वर के, वाचा-पालन करनेवाले अनुग्रह का प्रर्दशन-मंजूषा

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By John Piper About Marriage
Part of the series Marriage, Christ, and Covenant: One Flesh for the Glory of God

Translation by Desiring God


और उस ने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारहित दशा में मुर्दा थे, उसके साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया, 14 और विधियों {ऋण} का वह लेख जो {इसकी वैधानिक मांगों के साथ} हमारे नाम पर, और हमारे विरोध में था मिटा डाला; और उस को क्रूस पर कीलों से जड़कर साम्हने से हटा दिया। 15 और उस ने प्रधानताओं और अधिकारों को अपने ऊपर से उतार कर उन का खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय-जय- कार की ध्वनि सुनाई … 3:12 इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो, 13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। 14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो। 15 और मसीह की शान्ति जिस के लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो। 16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ। 17 और वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो। 18 हे पत्नियो, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने अपने पति के आधीन रहो। 19 हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो।

विगत दो सप्ताहों में जो हमने देखा है वो ये कि विवाह के बारे में हम जो सर्वाधिक बुनियादी चीज कह सकते हैं वो ये कि यह परमेश्वर का कार्य है, और सर्वाधिक अन्तिम चीज जो आप विवाह के बारे में कह सकते हैं ये है कि यह परमेश्वर का प्रदर्शन है। ये दो विशेषताएँ मूसा द्वारा उत्पत्ति 2 में व्यक्त किये गए हैं। लेकिन वे और अधिक स्पष्टता से यीशु और पौलुस के द्वारा ‘नया नियम’ में व्यक्त किये गए हैं।

अनुक्रम

यीशु: विवाह, परमेश्वर का कार्य है

यीशु इस विशेषता को सर्वाधिक स्पष्टता से रखता है कि विवाह परमेश्वर का कार्य है। मरकुस 10: 6-9, ‘‘सृष्टि के आरम्भ से ‘परमेश्वर ने नर और नारी करके उन को बनाया’ {उत्पत्ति 1: 27}, है, ‘इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे’ {उत्पत्ति 2: 24}। इसलिये वे अब दो नहीं पर एक तन हैं। इसलिये जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करे।’’ बाइबिल में ये सबसे स्पष्ट बयान है कि विवाह मात्र मानव का कार्य नहीं है। ‘‘परमेश्वर ने जोड़ा है’’ शब्दों का अर्थ है कि ये परमेश्वर का कार्य है।

पौलुस: विवाह परमेश्वर का प्रदर्शन है

पौलुस इस विशेषता को सर्वाधिक स्पष्टता से रखता है कि विवाह की बनावट, परमेश्वर का प्रदर्शन होने के लिए की गई है। इफिसियों 5: 31-32 में, वह उत्पत्ति 2:24 को उद्धृत करता है और फिर हमें वो भेद बताता है जो इसने सदैव अपने अन्दर रखा: ‘‘‘इस कारण मनुष्य अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे।’ यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूं।’’ दूसरे शब्दों में, माता पिता को छोड़ने और एक जीवन -साथी से मिले रहने और एक तन हो जाने में जो वाचा सम्मिलित है, वो मसीह और कलीसिया के बीच की वाचा का चित्रण है। मसीह और ‘उसकी’ कलीसिया के बीच वाचा-पालन करनेवाले प्रेम का प्रदर्शन करने के लिए, विवाह, सर्वाधिक मूलभूत रूप में अस्तित्व में रहता है।

मसीह और कलीसिया का एक नमूना

मैंने ‘नोएल’ से पूछा कि क्या कोई चीज थी जो वह चाहती थी कि मैं आज कहूँ। उसने कहा, ‘‘तुम बहुत बारम्बार नहीं कह सकते कि विवाह, मसीह और कलीसिया का एक नमूना है।’’ मैं सोचता हूँ कि वह सही है और इसके कम से कम तीन कारण हैं: 1) ये विवाह को मलिन हास्यप्रद तस्वीरों से बाहर निकालता है और इसे वो भव्य अर्थ देता है जो परमेश्वर का अभिप्राय था कि इसका हो; 2) ये विवाह को अनुग्रह में एक ठोस आधार देता है, क्योंकि मसीह ने अपनी दुल्हिन को केवल अनुग्रह के द्वारा ही प्राप्त किया और बनाये रखता है; और 3) ये दिखाता है कि पति की प्रधानता और पत्नी की आधीनता, क्रूसाकार और क्रूसित हैं। अर्थात्, मसीह और कलीसिया के प्रदर्शन के रूप में वे विवाह के अर्थ में ही बुने हुए हैं, लेकिन वे दोनों, मसीह के क्रूस पर स्वयँ का इन्कार करनेवाले काम के द्वारा परिभाषित होते हैं ताकि उनके घमण्ड और स्वार्थपरकता रद्द हो जाते हैं।

हमने पहिले दो संदेश, इन कारणों में से प्रथम पर खर्च किये हैं: परमेश्वर के वाचा-प्रेम के प्रदर्शन के रूप में, विवाह के लिए नींव देते हुए। विवाह, एक पुरुष और एक स्त्री के बीच एक वाचा है जिसमें वे, जब तक कि वे दोनों जीवित हैं, एक नये एक-तन संयुक्तता में, एक वफ़ादार पति और एक वफ़ादार पत्नी रहने की प्रतिज्ञा करते हैं। पवित्र प्रतिज्ञाओं और लैंगिक संयुक्तता के द्वारा मुहर लगायी गई, ये वाचा, परमेश्वर के वाचा-पालन करनेवाले अनुग्रह को प्रदर्शित करने लिए संरचित की गई है।

अनुग्रह में एक ठोस आधार

वो है आज का शीर्षक: ‘‘विवाह: परमेश्वर के, वाचा-पालन करनेवाले अनुग्रह का प्रदर्शन-मंजूषा।’’ अतः हम उस दूसरे कारण की ओर चलते हैं जो मैंने कहा कि ‘नोएल’ सही थी ये कहने में कि तुम बहुत बारम्बार नहीं कह सकते कि विवाह, मसीह और कलीसिया का एक नमूना है: यथा, कि ये विवाह को अनुग्रह में एक ठोस आधार देता है, चूंकि मसीह ने अपनी दुल्हिन को केवल अनुग्रह के द्वारा ही प्राप्त किया और बनाये रखता है।

दूसरे शब्दों में, आज मुख्य विषय ये है कि, चूंकि इस कलीसिया के साथ मसीह की नयी वाचा, लोहू से मोल लिये गए अनुग्रह के द्वारा सृजी गई और बनायी रखी जाती है, इसलिए, मानव विवाह, उस नये-वाचा-अनुग्रह को प्रदर्शित करने के लिए हैं। और जिस तरीके से वे इसे प्रदर्शित करते हैं वो है परमेश्वर के अनुग्रह के अनुभव में टिकाव लेने के द्वारा और परमेश्वर के साथ एक लम्बवत् अनुभव से, अपने पति/पत्नी के साथ एक क्षैतिज अनुभव में इसे बाहर मोड़ने के द्वारा। दूसरे शब्दों में, विवाह में, आप घंटा ब घंटा, परमेश्वर की क्षमा और निर्दोष ठहरायेजाने और प्रतिज्ञा किये गए भविष्य के अनुग्रह में एक हर्षपूर्ण निर्भरता में रहते हैं, और घंटा ब घंटा आप इसे बाहर अपने पति/पत्नी की ओर मोड़ते हैं — परमेश्वर की क्षमा और निर्दोष ठहरायेजाने और प्रतिज्ञा किये गए सहायता के विस्तार के रूप में। आज का विषय ये है।

क्षमा करनेवाले, निर्दोष ठहरानेवाले अनुग्रह की केन्द्रीयता

मैं चैकस हूँ कि सभी मसीहीगणों को अपने सभी सम्बन्धों में ये करने की अपेक्षा है (मात्र विवाहित मसीहीगण नहीं): घंटा ब घंटा, परमेश्वर के क्षमा करनेवाले, निर्दोष ठहरानेवाले, समस्त आपूर्ति करनेवाले अनुग्रह द्वारा जीवित रहिये, और फिर अपने जीवन में इसे अन्य सभों की ओर मोडि़ये। और यीशु कहते हैं कि हमारा सम्पूर्ण जीवन, परमेश्वर की महिमा का एक प्रदर्शन -मंजूषा है (मत्ति 5:16)। लेकिन विवाह, परमेश्वर के वाचा-अनुग्रह का एक अद्वितीय प्रदर्शन होने के लिए निर्दिष्ट किया गया है क्योंकि, अन्य सभी मानव सम्बन्धों से असमान, पति और पत्नी वाचा के द्वारा आजीवन, निकटतम सम्भव सम्बन्ध में बन्धे हुए हैं। प्रधानता और अधीनता की अद्वितीय भूमिकाएँ हैं, लेकिन आज का मेरा विषय वो नहीं है। वो बाद में आयेगा। आज मैं पति और पत्नी पर मसीहियों के रूप में विचार करता हूँ, सिर और शरीर की तुल्यरूपता पर नहीं। इसके पूर्व कि एक पुरुष और स्त्री बाइबिल आधारित और कृपालुता से, सिरत्व और अधीनता की अनोखी भूमिकाओं को लागू करें, उन्हें ये खोजना चाहिए कि क्षमाशीलता और निर्दोष ठहरायेजाने और प्रतिज्ञा की गई सहायता के लम्बवत् अनुभव पर अपने जीवनों को निर्मित करने और फिर इसे उनके जीवन-साथी की ओर क्षैतिज रूप से मोड़ने का क्या अर्थ है। अतः आज का केन्द्र -बिन्दु वही है।

अथवा, इसे विगत सप्ताह के संदेश के शब्दों में रखें: नग्न रहने और लज्जित न होने (उत्पत्ति 2: 25) की कुंजी, जबकि, वास्तव में, एक पति और एक पत्नी कई ऐसी चीजें करते हैं जिनके लिए उन्हें शर्मिन्दा होना चाहिए, परमेश्वर के लम्बवत् क्षमाशील, निर्दोष ठहरानेवाले अनुग्रह का अनुभव है, जो क्षैतिज रूप से एक-दूसरे की ओर मोड़ा जाता है और संसार को प्रदर्शित किया जाता है।

परमेश्वर का आने वाला प्रकोप

संक्षेप में, आइये इस सच के लिए नींव को हम कुलुस्सियों में देखें। हम कुलुस्सियों 3: 6 से आरम्भ करेंगे, ‘‘इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है।’’ यदि आप कहें, ‘‘सबसे अखिरी बात जो मैं अपनी समस्याग्रस्त विवाह में सुनाना चाहता हूँ, वो है परमेश्वर का प्रकोप,’’ तो आप दिसम्बर 26, 2004 को इन्डोनेशिया के पश्चिमी तट पर एक निराश मछुआरे के समान हैं, जो कह रहा है, ‘‘अंतिम बात जो मैं मेरे समस्याग्रस्त मछली के व्यापार के बारे में सुनना चाहूंगा वो हैं ‘सुनामी’।’’ परमेश्वर के प्रकोप की एक गहरी समझ और भय ही, ठीक वो है, जो अनेकों विवाहों को आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना, सुसमाचार को मात्र मानव सम्बन्धों तक तरल कर दिया जाता है और वो अपनी बाइबिल-शास्त्रीय महिमा खो देता है। और इसके बिना, आप से सोचने को प्रलोभित होंगे कि आपके जीवन-साथी के विरुद्ध आपका प्रकोप—आपका क्रोध — जय पाने के लिए बहुत बड़ा है, क्योंकि आपने वास्तव में कभी नहीं चखा कि असीम विराट प्रकोप को अनुग्रह के द्वारा जय पाते देखना क्या है, यथा, आपके विरोध में परमेश्वर का प्रकोप।

परमेश्वर के प्रकोप का हटाया जाना

अतः हम परमेश्वर का प्रकोप और इसके हटाये जाने से आरम्भ करते हैं। अब मेरे साथ कुलुस्सियों 2:13-14 में वापिस जाइये, ‘‘और उस ने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारहित दशा में मुर्दा थे, उसके {मसीह के} साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया, और विधियों {ऋण} का वह लेख जो {इसकी वैधानिक मांगों के साथ} हमारे नाम पर, और हमारे विरोध में था मिटा डाला; और उस को क्रूस पर कीलों से जड़कर साम्हने से हटा दिया।’’

वे अंतिम शब्द सर्वाधिक निर्णायक हैं। यह — विधियों {ऋण} का वह लेख जो हमारे विरोध में था — परमेश्वर ने उस को क्रूस पर कीलों से जड़कर साम्हने से हटा दिया। वो कब हुआ? दो हजार साल पहिले। ये आपके अन्दर नहीं हुआ, और यह आप से किसी सहायता के साथ नहीं हुआ। आपके जन्म लेने के भी पूर्व, परमेश्वर ने उसे आपके लिए किया और आपके बाहर किया। हमारे उद्धार की, ये महान् यथार्थता है।

ऋण का अभिलेख, क्रूस पर रद्द हो गया

निश्चित कीजिये कि सब सत्यों से सर्वाधिक अद्भुत और चकित करनेवाले इस सच को आप देखें: परमेश्वर ने आपके सभी पापों के अभिलेख को, जिसने आपको प्रकोप का ऋणी बनाया था (पाप, परमेश्वर के विरुद्ध अपराध हैं जो ‘उसके’ प्रकोप को ले आते हैं), लिया और उन्हें आपके मुख के सम्मुख पकड़े रहने और आपको नरक में भेजने के वारंट के रूप में उपयोग करने की बनिस्बत, ‘उसने’ उन्हें अपने पुत्र की हथेली पर रख दिया और उनसे होता हुआ एक कीला क्रूस में गाड़ दिया।

किस के पाप क्रूस पर कील से जड़ दिये गए? किस के पापों को क्रूस पर दण्डित किया गया? उत्तर: मेरे पाप। और ‘नोएल’ के पाप — मेरी पत्नी के पाप और मेरे पाप — उन सभी के पाप जो स्वयँ को बचाने से हताश हैं और केवल मसीह में भरोसा रखते हैं। किस के हाथ क्रूस पर कीलों से ठोंक दिये गए? किसे क्रूस पर दण्डित किया गया? यीशु को। इसके लिए एक सुन्दर नाम है। इसे एक प्रतिस्थापन कहा जाता है। परमेश्वर ने मेरे पाप पर, मसीह के शरीर में, दण्ड की आज्ञा दी (रोमियों 8:3)। पतियो, आप इस पर बहुत अधिक मजबूती से विश्वास नहीं कर सकते। पत्नियो, आप इस पर बहुत अधिक मजबूती से विश्वास नहीं कर सकतीं।

निर्दोष ठहराना, क्षमा से आगे बढ़ जाता है

और यदि हम पीछे जायें और रोमियों की पत्री से निर्दोष ठहराये जाने की अपनी सारी समझ को यहाँ ले आयें, तो हम और अधिक कह सकते हैं। निर्दोष ठहराना, क्षमा से आगे बढ़ जाता है। मसीह के कारण न केवल हमें क्षमा किया जाता है, अपितु परमेश्वर हमें मसीह के कारण धर्मी भी घोषित करता है। परमेश्वर हम से दो चीजों की मांग करता है: हमारे पापों के लिए दण्ड और हमारी जीवनों में सिद्धता। हमारे पापों को दण्डित किया जाना अवश्य है और हमारी जीवनों को धर्मी होना अवश्य है। लेकिन हम स्वयँ अपना दण्ड नहीं उठा सकते (भजन 49:7-8), और हम अपनी स्वयँ की धार्मिकता उपलब्ध नहीं कर सकते। कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं (रोमियों 3:10)।

इसलिए, परमेश्वर ने, हमारे लिए ‘उसके’ अपार प्रेम के द्वारा, अपने स्वयँ के पुत्र को उपलब्ध कर दिया कि दोनों काम करे। मसीह हमारे दण्ड को उठाता है और मसीह हमारी धार्मिकता पूरी करता है। और जब हम मसीह को ग्रहण करते हैं (यूहन्ना 1:12), ‘उसका’ सम्पूर्ण दण्ड और ‘उसकी’ सारी धार्मिकता हमारी गिनी जाती है (रोमियों 4:4-6; 5:19; 5:1; 8:1; 10:4; फिलिप्पियों 3:8-9; 2 कुरिन्थियों 5:21)।

निर्दोष ठहराना, बाहर की ओर मुड़ा हुआ

ये वो लम्बवत् वास्तविकता है जो हमारे जीवन-साथी के प्रति बाहर क्षैतिज रूप से मोड़ी जाना चाहिए यदि विवाह को परमेश्वर के वाचा-बान्धने, वाचा-पालन करनेवाले अनुग्रह को प्रदर्शित करना है। हम इसे कुलुस्सियों 3:12-13 में देखते हैं, ‘‘इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो:जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।’’

‘‘जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो’’ — आपके जीवन-साथी (पति/पत्नी) को। जैसा प्रभु आपकी ‘‘सह लेता है,’’ वैसा ही आपको आपके जीवन-साथी की सह लेना चाहिए। जब आप ‘उसकी’ इच्छा से कम पाये जाते हैं, प्रभु प्रतिदिन आपकी ‘‘सह लेता है।’’ अवश्य ही, मसीह आपसे जो अपेक्षा करता है और जो आप उपार्जित करते हैं, के बीच की दूरी, उस दूरी से असीमित रूप से विशाल है, जो आप अपने जीवन-साथी से अपेक्षा करते हैं और जो वह उपार्जित करता है। हम जितना करते हैं, मसीह सदैव उससे अधिक क्षमा करता व धीरज से सहता है। क्षमा कीजिये जैसे कि आप क्षमा किये गए। सह लीजिये जैसा कि ‘वह’ आपकी सह लेता है। ये बात दोनों दशा में लागू होती है चाहे आप एक विश्वासी से विवाहित हैं अथवा एक अविश्वासी से। मसीह के क्रूस में आपके लिए परमेश्वर के अनुग्रह की माप को आपके जीवन-साथी के प्रति आपके अनुग्रह की माप होने दीजिये।

और यदि आप एक विश्वासी से विवाहित हैं, आप ये जोड़ सकते हैं: जैसा प्रभु आपको मसीह में धर्मी गिनता है, यद्यपि आप वास्तविक व्यवहार या मनोभाव में नहीं हैं, उसी तरह अपने जीवन-साथी को मसीह में धर्मी गिनिये, यद्यपि वह (पति) है नहीं — यद्यपि वो (पत्नी) है नहीं। दूसरे शब्दों में, कुलुस्सियों 3 कहता है, क्षमा और निर्दोष ठहराने का लम्बवत् अनुग्रह लो और उन्हें बाहर की ओर क्षैतिज रूप में अपने जीवन-साथी की ओर मोड़ दो। विवाह इसी के लिए है, सर्वाधिक अन्ततोगत्वा — मसीह के वाचा-पालन करनेवाले अनुग्रह का प्रदर्शन।

सुसमाचार में जड़ पकड़े हुई बुद्धिमŸाा की आवश्यकता

अब इस बिन्दु पर, सैकड़ों जटिल स्थितियाँ उभरती हैं जो इन सुसमाचार की सच्चाईयों में और दुःखदायी, ईमानदार अनुभव के लम्बे वर्षों में जड़ पकड़े हुई, गहरी आत्मिक बुद्धिमत्ता के लिए पुकार करती हैं। दूसरे शब्दों में, कोई तरीका नहीं है कि मैं इस संदेश को प्रत्येक जन की विशिष्ट आवश्यकताओं पर लागू कर सकता। उपदेश देने के अलावा, हमें पवित्र आत्मा की आवश्यकता है, हमें प्रार्थना की आवश्यकता है, हमें अपने स्वयँ के लिए ‘वचन’ के ऊपर मनन करने की आवश्यकता है, हमें दूसरों की अन्तर्दृष्टि को पढ़ने की आवश्यकता है, हमें बुद्धिमान मित्रों के परामर्श की आवश्यकता है जो दुःखों से पक्के हो चुके हैं, हमें कलीसिया की आवश्यकता है कि हमें सहारा दे जब सब कुछ बिखर जाता है। अतः मुझे कोई भ्रान्तियाँ नहीं हैं कि आपकी सहायता करने के लिए जो सब कहा जाना था मैं कह सकता।

लम्बवत् रूप से जीना, फिर बाहर की ओर मुड़ना

क्षमा और दूसरे को धर्मी गिनने के रूप में वाचा-प्रेम पर मैं क्यों जोर दे रहा हूँ, इसके कई कारण देने के द्वारा समाप्त करने में सहायता हो सकती है। क्या मैं दूसरे व्यक्ति में प्रसन्न रहने में विश्वास नहीं करता? हाँ, मैं करता हूँ। अनुभव और बाइबिल दोनों मुझे उधर ढकेलते हैं। निश्चित करने के लिए कि यीशु का ब्याह ‘उसकी’ दुल्हिन, कलीसिया से हो जावे और स्पष्टतया ये सम्भव और अच्छा दोनों है कि प्रभु को प्रसन्न रखा जावे (कुलुस्सियों 1:10)। और ‘उस’ में हमारी प्रसन्नता के ‘वह’ परम योग्य है। विवाह में यह आदर्श है: दो व्यक्ति अपने आप को नम्र करते हुए और भक्तिपूर्ण तरीकों से बदल जाने की खोज में रहें, जो हमारे जीवन-साथियों को प्रसन्न करे और उनकी शारीरिक और भावनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करे अथवा हर एक भले तरीके से उन्हें प्रसन्न करे। हाँ। मसीह और कलीसिया का सम्बन्ध उस सब को सम्मिलित करता है।

लेकिन, कारण कि परमेश्वर के अनुग्रह से लम्बवत् रूप से जीने और फिर अपने जीवन-साथी की ओर क्षमा और निर्दोष ठहराने में बाहर क्षैतिज रूप से मुड़ने, पर मैं जोर देता हूं, है 1) क्योंकि पाप और अपरिचित होने के आधार पर टकराव होने जा रहा है (और एक-दूसरे के बारे में अन्जानापन क्या है और पाप क्या है, इस बारे में आप एक-दूसरे के साथ सहमत भी नहीं हो सकेंगे); और 2) क्योंकि धीरज से सहने और क्षमा करने का कठोर, खुरदुरा कार्य ही है जो स्नेहों का फलना-फूलना सम्भव बनाता है जबकि वे मर गए प्रतीत होते हैं; और 3) क्योंकि परमेश्वर को महिमा मिलती है जब दो बहुत भिन्न और बहुत त्रुटिपूर्ण व्यक्ति, मसीह पर भरोसा रखते हुए, क्लेश के भट्टे में तपाकर वफ़ादारी का जीवन गढ़ते हैं।

मसीह में, परमेश्वर ने आपको — और आपके पति/आपकी पत्नी को क्षमा कर दिया है

अब, मैं इसे यहाँ अगली बार उठाऊंगा और एक खोज के बारे में बताऊंगा जो ‘नोएल’ और मैंने की है। मैं भविष्यकथन करता हूँ कि संदेश को ‘‘द कॉम्पोस्ट पाइल सरमन’’ कहा जावेगा।

तब तक, पतियो और पत्नियो, इन विशाल सच्चाईयों को अपने विवेकों में बसा लीजिये — वे सच जो आपके विवाह में की किसी भी समस्या से बड़े हैं — कि परमेश्वर ने ‘‘हमारे सब अपराधों को क्षमा किया, ऋण का वह लेख जो हमारे नाम पर, और हमारे विरोध में, इसकी वैधानिक मांगों के साथ था, मिटा डाला। इसे ‘उसने’ क्रूस पर कीलों से जड़कर साम्हने से हटा दिया।’’ इस पर अपने सम्पूर्ण हृदय से विश्वास कीजिये और अपने पति/पत्नी की ओर मोडि़ये।