यूसुफ और परमेश्वर के पुत्र का बेचा जाना

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By John Piper About Redemptive History
Part of the series Spectacular Sins and Their Global Purpose in the Glory of Christ

Translation by Desiring God


अनुक्रम

अब्राम के लिए आश्चर्यजनक शब्द

इससे पहले हम यूसुफ और उसके भाइयों के पाप की असाधारण पाप की कहानी और उसमें यीशु मसीह की महिमा के सार्वभौमिक अभिप्राय की कहानी को पुन: सुनाएँ , आइए हम उत्पत्ति १२ को देखे | परमेश्वर ने इब्राहीम को संसार के सब लोगों में से अपने सेंतमेंत अनुग्रह द्वारा चुना , इसमें अब्राम की कोई विशेष योग्यता नहीं थी |उत्पत्ति १२: २,३ में , परमेश्वर उसे एक प्रतिज्ञा देता है : “ मैं तुझे आशीष दूंगा और नाम महान करूंगा ,इसलिए तू आशीष का कारण होगा | जो तुझे आशीर्वाद देंगे , मैं उन्हें आशीष दूंगा तथा जो तुझे शाप दे, मैं उसे शाप दूंगा , और पृथ्वी के सब घराने तुझ में आशीष पाएँगे |” यह इस्राएल की प्रजा का आरम्भ था जिसके द्वारा मसीह यीशु , परमेश्वर का पुत्र इस संसार में हम पापियों को उद्धार देने आएगा |

तब अध्याय १५ में , परमेश्वर अब्राम के साथ एक औपचारिक वाचा बांधता है | वह एक उल्लेखनीय प्रतिकात्मक कार्य का कुछ आश्चर्यजनक शब्दों का उपयोग करता है | उत्पत्ति १५: १३-१६ में वह अब्राम से कहता है, “निश्चयपूर्वक जान ले कि तेरे वंशज एक ऐसे देश में परदेशी होकर रहेंगे जो उनका नहीं है , जहां उन्हें चार सौ वर्ष तक दासत्व में रहना और दुख सहना होगा | परन्तु मैं उस देश को दण्ड दूंगा जिसके दासत्व में वे रहेंगे | उसके पश्चात वे बहुत सा धन लेकर निकल आएंगे ... तब चौथी पीढ़ी से वे फिर यहां लौट के आएंगे , क्योंकि एमोरिओं का अधर्म अब तक पूरा नहीं हुआ है |”

चार सौ वर्ष !

अत: अपने चुने हुए लोगों के साथ वाचा के सम्बन्ध के आरंम्भ ही में , परमेश्वर मिस्त्र में ४०० वर्ष के दासत्व तथा प्रतिज्ञात देश में वापसी की भविष्यवाणी करता है | “उन्हें चार सौ वर्ष तक दासत्व में रहना और दुख सहना होगा|” इसके पीछे परमेश्वर के पास एक अजीब कारण है कि उन्हें चार शताब्दियों तक परदेश में क्यों रहना होगा (इसके विषय सोचो |) और अभी देश के वारिस नही होना था , और वह कारण पद १५ में है , “एमोरियों का अधर्म अब तक पूरा नही हुआ है |” ४०० वर्ष बाद यहोशु कि अगुवाई में जब इस्राएली इस देश को लेने आएंगे तो वे इन जातियों को नाश कर देंगे | हम इसे कैसे समझें ? व्यवस्थाविवरण ९:५ में परमेश्वर का उत्तर दिया है , “तू अपनी धार्मिकता अथवा अपने मन की खराई के कारण अपने देश अधिकार करने नहीं जा रहा है , परन्तु इन जातियों की दुष्टता के कारण ही तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तेरे सामने से खदेड़ रहा है कि वह अपने उस वचन को पूरा करे जिसकी शपथ यहोवा ने तेरे पूर्वजों अर्थात , इब्राहीम, इसहाक , तथा याकूब से खाई थी |” प्रतिज्ञात देश पर विजय दुष्टता की सदियों के पूरा होने पर परमेश्वर का दण्ड है |

परमेश्वर के लोग अनेक विपत्तियों से होकर प्रवेश करते हैं

इस बीच परमेश्वर कहता है कि उसकी प्रजा एक ऐसे देश में , अर्थात मिस्र में परदेशी होकर रहेगी जो उनका नहीं है और ४०० वर्ष तक दुख उठाएगी | अत: अपनी यात्री प्रजा के लिए परमेश्वर की एक योजना है स्वर्ग पहुंचने तक इस पृथ्वी पर आपके जीवन की एक एक तस्वीर के समान | यदि परमेश्वर उस प्रतिज्ञात देश से पहले अपनी प्रजा के लिए ४०० वर्ष क्लेशों की योजना बनाता है (उत्पत्ति १५:१३ ), तो हमें चकित नही होना चाहिए जब वह हमसे यह कहता है कि , “तुम्हें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है” (प्रे . का. १४:२२ )|

नबूवत एक असाधारण पाप के माध्यम से पूरी हुई

आज हमारे लिए यह प्रश्न है: यह कैसे होगा कि परमेश्वर के लोग मिस्र में खदेड़े जाएँ ? और मिस्र में इस अजीब प्रवास में परमेश्वर अपने विषय तथा अपने पुत्र के विषय हमें क्या सिखाना चाहता है? उत्तर यह है कि परमेश्वर एक असाधारण पाप के माध्यम से इस प्रतिज्ञा को पूरा करता है | और इस पाप के द्वारा , वह न केवल इस्राएल की अपनी वाचा की प्रजा को सुरक्षित जीवित रखता है, परन्तु उस वंश को भी जिसके द्वारा यहूदा का सिंह अपने लोगों को बचाने और उन पर राज्य करने आएगा | अत: यूसुफ की कहानी में बड़ी बड़ी बातें दांव पर लगी हैं |

इब्राहीम , इसहाक , और याकूब

इब्राहीम पर पुन: विचार करते हुए हम इस कहानी में यूसुफ तक विचार करें | इब्राहीम का पुत्र इसहाक था | इसहाक का पुत्र याकूब था (जिसका दूसरा नाम इस्राएल है), और याकूब के बारह पुत्रों में एक यूसुफ था, जिसने दो स्वप्न देखे | इन दोनों ही में उसके ग्यारह भाई और माता पिता उसे दण्डवत करते हैं | उत्पत्ति ३७:८ में लिखा है , कि उसके भाई इन स्वप्नों के कारण उससे घृणा करते थे | और पद ११ कहता है कि वे उसे डाह करते थे |

स्वप्नदर्शी को नाश करना

वह दिन आया जब वे अपने भाई के विरुद्ध अपने गुरसे को निकाल सकते थे | उसके पिता ने उसे भेजा कि जाकर उसके भाइयों का कुशल क्षेम देखे (उत्पत्ति ३७:१४ )| वे उसे आता हुआ देखते हैं और पद १९ ,२० कहते हैं , “देखो, वह स्वप्नदर्शी आ रहा है | तो आओ , हम इसे घात करके किसी गड्डे में डाल दें , फिर कहेंगे कि कोई हिंसक पशु उसे खा गया | तब हम देखेंगे कि उसके स्वप्नों का क्या होगा |” रूबेन उसे बचा लेने का प्रयास करता है, परन्तु उसका प्रयास आंशिक रूप से ही सफल होता है जब कि उसके भाई यूसुफ को मिस्र कि ओर जा रहे इश्माएलियों के एक दल को एक दास के रूप में बेच देते हैं (पद २५) | वे उसके उस विशेष अंगरखे को लेते हैं ,और उसे एक पशु के लहू में डुबाते हैं , और उसका पिता यह सोचता है कि किसी वन पशु ने उसे खा लिया था | भाई लोग सोचते हैं कि कहानी खत्म हुई |

एक अदृश्य हाथ कार्य कर रहा था

परन्तु उन्होंने सोचा भी नहीं था कि क्या हो रहा था | उनके कृत्यों में परमेश्वर के अदृश्य हाथ के प्रति वे बिल्कुल बेखबर थे |उन्हें यह पता नहीं था कि इस स्वप्न दर्शी को नाश करने के इस प्रयास में ही, वे यूसुफ के स्वप्नों को पूरा कर रहे थे | कितनी बार परमेश्वर इसी रीती से कार्य करता है | वह नाश करने वालों के उन्हीं पापों को लेता और उन्हें नाश किए जाने वाले के छुटकारे का माध्यम बना देता है |

पोतिपर , बन्दीगृह और ईश्वरीय रक्षा

मिस्र में , पोतिपर यूसुफ को खरीद लेता है | पोतिपर फिरौन का एक हाकिम था जो कि अंगरक्षकों का प्रधान था (उत्पत्ति ३७:३६) | वह यूसुफ परमेश्वर के एक अदभुत प्रबंध के अंतर्गत विश्वस्तता से पोतिपर की सेवा करता है | वह पोतिपर के घराने पर सर्वेसर्वा ठहराया जाता है | और आप सोचेंगे कि धर्मी तो समृद्ध होंगे |परन्तु यह अलग बात है | पोतिपर की पत्नी संभोग के लिए उसे फुसलाने का प्रयास करती है | वह व्यभिचार से बचकर भागता है और ठुकराई हुई स्त्री विद्वेषपूर्ण है और यूसुफ के विषय झूट बोलती है | और उसके धर्मी होनेपर भी , उसे बन्दीगृह में डाल दिया जाता है |

बन्दीगृह में भी इस सब रहस्यपूर्ण बातों में परमेश्वर जो कर रहा था उससे बिल्कुल अनजान ,वह अपने दरोगा की ईमानदारी से सेवा करता रहा और उसे अधिकार तथा दायित्व सौंपे गए | फिरौन के साकी और रसोइये के दो स्वप्नों का अर्थ बताने के द्वारा, अंतत: यूसुफ को फिरौन के स्वप्नों का अर्थ बताने के लिए बन्दीग्रह से बाहर लाया गया | उसके बताए अर्थ सच निकलते हैं और फिरौन उसे असाधारण बुध्दिमान पाता है और यूसुफ को मिस्र पर अधिकारी ठहरा देता है| “ तू मेरे घर का अधिकारी होगा” फिरौन कहता है, “और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी प्रजा चलेगी , केवल सिंहासन के विषय में मैं तुझ से बड़ा रहूँगा” (उत्पत्ति ४१:४० )|

स्वप्न पुरे होते है |

ठीक जैसा कि यूसुफ ने कहा था , उस देश में बहुतायत के सात वर्षों के पश्चात अकाल के सात वर्ष आते हैं | उन सात बहुतायत के वर्षों में अनाज के बड़े भंडार एकत्र करने द्वारा यूसुफ भुखमरी को रोकता है | अंतत: उसके भाइयों पता चलता है कि मिस्र में अनाज है, और वे सहायता के लिए जाते हैं | पहला तो वे अपने भाई को नहीं पहचानते हैं , परन्तु अंतत: वह स्वयं को प्रगट करता है | जब उन्होंने उसे दासत्व में बेचा था तो वह सत्रह वर्ष का था (३७:२ ) और अब जब उन्हें अपना परिचय देता है वह उनचालीस वर्ष का है (४१:४६,५३, ४५: ६) | बाईस वर्ष बीत चुके थे | वे दंग रह जाते हैं | उन्होंने उस स्वप्न दर्शी से छुटकारा पाने का प्रयास किया था , और उस से छुटकारा पाने के इस प्रयास में , उनके स्वप्न को पूरा किया और आखिरकार वे भाई यूसुफ को दण्डवत कर रहे हैं |

फिर वह उन्हें उनके जीवन बचाने के लिए मिस्र में रहने के लिए बुलाता है, और वह पुरानी नबूवत कि इब्राहीम का वंश मिस्र में ४०० वर्ष तक परदेशी होकर रहेगा , सच होना प्रारम्भ होती है | अत: हम फिर पूछते हैं , यह कैसे हुआ कि परमेश्वर की योजना की पूर्णता में परमेश्वर की प्रजा मिस्र में खदेड़ी गई ? और मिस्र में इस अजीब प्रवास के द्वारा परमेश्वर अपने मार्गों के और अपने पुत्र के विषय हमें क्या सिखाना चाहता है?

इस नबूवत के पूर्ण होने के विषय बाइबल के दो वृतांत

वे लोग मिस्र में कैसे भेजे गए कि उत्तर एक स्तर पर स्पष्ट है : वे हत्या के प्रयास , लोभ पूर्वक दास के रूप भाई को बेचने , और एक वृध्द पुरुष के टूटे हुए ह्रदय को निर्दयता पूर्वक धोखा देने के असाधारण पाप द्वारा वहां पहुंचे | परन्तु परमेश्वर कि भविष्यवाणी के इस साकार होने को बाइबल कैसे समझती है | दो रीती से

१. परमेश्वर ने यूसुफ को जीवन रक्षा के लिए भेजा

उत्पत्ति ४५:५ में, पहले यूसुफ अपने भाइयों से जो अत्यंत डरे हुए थे कहता है , “ अब व्याकुल या अपने आप से क्रोंधित मत होओ कि तुमने मुझे यहां आनेवाले के हाथ बेच दिया | क्योंकि परमेश्वर ने प्राणों की रक्षा के लिए तुम से पहिले मुझे यहां भेजा था” | इन भाइयों के असाधारण पाप को बाइबल जिस पहली रीती से वर्णित करती है वह यह है कि यूसुफ को मिस्र में भेजने का परमेश्वर का अपना तरीका था कि उन्हीं लोगों को बचाए जो उसे मारना चाह रहे थे | “परमेश्वर ने तुम से पहिले मुझे यहाँ भेजा” |

और हम कहीं यह न सोचें कि यह थोड़े से महत्व की एक टिप्पणी मात्र थी, हम इसी बात को भजन १०५:१६ ,१७ में पढ़ते हैं केवल वहीं इसका मूल्य और अधिक दिखाया है | परमेश्वर मिस्र में यूसुफ को पहुंचाने के लिए इन भाइयों के कामों को ही नियंत्रित नहीं कर रहा था, परन्तु परमेश्वर उस अकाल पर भी नियंत्रण कर रहा : “फिर उसने उस देश में अकाल भेजा, उसने रोटी का सहारा बिल्कुल तोड़ दिया | उसने उनसे पहिले एक व्यक्ति को भेजा अर्थात यूसुफ को , जो दास होने के लिए बेचा गया |” अत: अपने मन से इस विचार को निकाल दीजिए कि परमेश्वर ने अपने आप ही से होने या शैतान द्वारा भेजे गए अकाल को पहले से जाना था | परमेश्वर ने अकाल भेजा था और छुटकारे की तैयारी की थी |

२. मनुष्य ने जो बुराई करने की ठानी थी परमेश्वर ने उसे भलाई में बदल दिया

अत: परमेश्वर की इस भविष्यवाणी के पुरे होने को कि उसके लोग मिस्र जाएंगे बाइबल यह कहने के द्वारा समझती है कि परमेश्वर ने उन से पहिले यूसुफ को वहां भेजा था | जिस दूसरी रीती बाइबल इस भविष्यवाणी को समझाती है और वह और भी अधिक व्यापक और गहरा है | ये भाई यूसुफ के पास आए , इस बार उनके पिता की मृत्यु के पश्चात , और अब वे पुन: भयभीत थे कि वह उनसे बदला लेगा | उत्पत्ति ५०:१९, २० में, यूसुफ कहता है , “ डरों मत , क्या मैं परमेश्वर के स्थान पर हूं ? तुमने तो मेरे साथ बुराई करने की ठानी थी, परन्तु परमेश्वर ने उसी को भलाई के लिए ले लिया , जैसा कि आज के दिन हो रहा है कि बहुत से लोगों के प्राण बचे |”

बाइबल जिस दूसरी रीती से यह समझती है कि किस रीती से अपनी भविष्यवाणी को पूरा किया वह यह है |उन भाइयों ने बुरे के लिए यूसुफ को बेचा था , परन्तु परमेश्वर की इसमें भलाई की योजना थी | घ्यान दीजिए कि यहां यह नहीं लिखा है कि उन्होंने जब यह बुराई करने की ठानी उसके पश्चात परमेश्वर ने इस बुराई को भलाई के लिए ले लिया | यहां लिखा है कि उस बुरे कार्य भी में , दो योजनाएं थी | इस पापपूर्ण कार्य में उन्होंने बुराई कि ठानी थी , और इस पापपूर्ण कार्य में पमेश्वर ने भलाई की |

दर्शाना , जीवन बचानेवाला पाप

मनुष्य या शैतान जो बुराई कि योजना बनाता है, परमेश्वर उसे, किसी बड़ी भलाई के लिए लेता है | उत्पत्ति ४५:५ में जिस बड़ी भलाई का उल्लेख है “प्राणों की रक्षा “ है | और उत्पत्ति ५०:२० में जिस बड़ी भलाई का उल्लेख है वह “ जैसा कि आज के दिन हो रहा है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचें” है | परन्तु उन शब्दों में , और इस पूरी कहानी में कि परमेश्वर कैसे अपने लोगों को बचाता है, पाप में, मसीह यीशु की महिमा में इस पाप , इस जीवन रक्षक पाप , के विश्वव्यापी अभिप्राय दिखते हैं |

मसीह यीशु की महिमा को इंगित करनेवाली तीन बातें

इस कहानी में आइए हम उन तीन बातों को देखें जो हमें मसीह की महिमा और सच्चाई को देखने लिए तैयार करते हैं |

१. पाप और दुख उठाने से उध्दार आता है

पहले , हम इस सामान्य प्रारूप को देखें जो कि बाइबल में बारम्बार मिलता है , अर्थात यह कि अपने लोगों के लिए परमेश्वर के उध्दार की विजय अक्सर पाप और दुखभोग द्वारा आती है | यूसुफ के भाइयों ने उसके विरुध्द पाप किया , और इस कारण उसने दुख सहा | और इस सब में, परमेश्वर अपने लोगों को बचाने के लिए कार्यरत था |

उन लोगों को भी जो उस उध्दारकर्ता को नाश करने का प्रयास कर रहे थे | यह बात कि यीशु इस रीती से आया इतने अधिक लोगों के लिए आश्चर्यजनक नहीं होनी चाहिए थी | यह कि उसके विरुध्द पाप किया और उसने दुख सहा कि अपने लोगों का उध्दार करे, बारम्बार ही दिखाई देता है और इसी कि हमें आशा करना चाहिए |

अत: यूसुफ की कहानी में और उसके भाइयों के उस असाधारण पाप में, हम मसीह की महिमा को देखने के लिए तैयार किए जाते है | उसके धीरज और दीनता और सेवाभाव को, उन्हीं को बचाने का प्रयास करते हुए जो उसे मर डालना चाहते हों|

वह मेरे लिए मर गया , जिसने मेरे लिए ...
दर्द सहा , किसने मृत्यु को सह लिया ?
अद्भुत प्रेम ! कैसे हो सकता है
कि आप , मेरे परमेश्वर , मेरे लिए मर जाएं ?

२. यह दुख उठाने वाला धर्मी है

दूसरी बात यह है कि यूसुफ की कहानी और उसके भाइयों का असाधारण पाप हमें बस इसी सामान्य प्रारूप के कारण यीशु को देखने के लिए तैयार नहीं करता है कि उसके लोगों के लिए परमेश्वर के उध्दार की विजय दुख उठाने और पाप के द्वारा आती है, परन्तु और विशेष रूप से, इस मामले में , इसलिए कि जो दुख उठा रहा है और जिसके विरुध्द पाप किया गया वह अति धर्मी है | इस कहानी में यूसुफ प्रत्येक सम्बन्ध में उसकी दृढ़ता तथा विश्वासयोग्यता का एक आदर्श नमूना है | जिस निर्वासन में उसे नहीं जाना था वहां रहते हुए भी वह पोतिपर के और दरोगा के प्रति ईमानदार है | उत्पत्ति ३९: २२, “और मुख्य दरोगा ने उस बन्दीगृह के सब कैदियों को यूसुफ के हाथ में सौंप दिया | इस प्रकार जो कुछ वहां होता था वह सब उसी की आज्ञा से होता था |”

और यूसुफ को क्या प्रतिफल मिला था? पोतिपर कि पत्नी ने उसके विषय झूठ बोला था , और फिरौन को पिलाने वाले , जिसके स्वप्न का यूसुफ ने अर्थ बताया था, उन स्वप्नों के पश्चात दो वर्ष तक उसे भूल गया था | अत: इन सब बातों का अर्थ मात्र यह नहीं है कि पाप और दुख हैं और परमेश्वर इन सब में कार्यरत है कि अपने लोगों को बचाए | परन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि धर्मी जन , यद्यपि लम्बे समय तक दुर्व्यवहार सहे , अन्त में परमेश्वर द्वारा सच्चा ठहरा जाता है | यद्यपि दूसरों ने इस धर्मी पत्थर को ठुकरा दिया था, परमेश्वर ने उसे कोने का पत्थर बना दिया (मत्ती २१:४२), उसके सताने वालों के उध्दार के लिए उसका धर्मी ठहराया जाना ही माध्यम बन जाता है |

मसीह यीशु ही वह सिध्द पूर्ण धर्मी जन है (प्रे .का. ७:५२) | दूसरों को ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो उसका जीवन इतना बुरा चल रहा था उसे पापी ही होना चाहिए | परन्तु अन्त में , उसके विरुध्द किये गए सारे पाप , वे सारे दुख जो उसने पूर्ण धर्मी रहते हुए सहे , उसके सच्चे ठहराए जाने का कारण होते हैं और इसके कारण हमारे उध्दार का | यदि यूसुफ अपनी दृढ़ता के मामले में अदभुत है तो मसीह यीशु उस से लाखों गुना अद्भुत है , क्योंकि उसने लाखों गुना अधिक दुख सहा और इस के लाखों गुना कम योग्य था, और वह इन सब में पूर्णता: दृढ , विश्वास योग्य तथा धर्मी बना रहा |

३. यहूदा से राजदण्ड कभी अलग न होगा

इस कहानी में यूसुफ तथा यीशु के मध्य अन्य और समानताएं हैं | परन्तु अब हम इस कहानी में यीशु के विषय में जो सबसे महत्वपूर्ण बात है उसे देखेंगे , और यह यूसुफ के साथ समानता नहीं हैं | यह यीशु के आगमन के विषय एक नबूवत है, जो कि पूरी नहीं हो सकती थी यदि याकूब के ये पापी पुत्र अकाल में भूखे मर गए होते | इन भाइयों का यह असाधारण पाप यहूदा के गोत्र को समाप्त होने से बचाने के लिए परमेश्वर का एक साधन था कि यहूदा का सिंह , मसीह यीशु जन्म ले और मरे और जी उठे और संसार के सब लोगों पर राज्य करे|

उत्पत्ति ४९:८ -१० में हम इसे सबसे स्पष्ट रीती से देखते हैं | पिता याकूब मरने पर था, और इसके पहले कि उसकी मृत्यु हो, वह अपने समस्त पुत्रों को आशीष देता है | अपने पुत्र यहूदा के विषय वह कहता है कि ,

ये यहूदा , तेरे भाई तेरी प्रशंसा करेंगे , तेरा हाथ तेरे शत्रुओं की गर्दन पर पडेगा | तेरे पिता के पुत्र तुझे दण्डवत करेंगे | यहूदा सिंह का बच्चा है | हे मेरे पुत्र, तू शिकार करके ऊपर चढ़ आया है| वह सिंह के समान दबकर बैठ गया है , और शेरनी को छेड़ने का दुस्साहस कौन करेगा? यहूदा से तब तक राज दण्ड न छूटेगा और न उसके पैरों के बीच से शासकीय राजदण्ड हटेगा जब तक की शीलो (उचित अधिकारी) न आए , और राज्य राज्य के लोग उसकी आज्ञा मानेंगे |

यहां इस्राएल के अंतिम राजा, यहूदा के सिंह , मसीह के आगमन की नबूवत है | पद १० में ध्यान दीजिए कि राजदण्ड शासक की लाठी , राजा का चिन्ह, यहूदा के वंश में से होगा जब तक कि वह न आए जो एक साधारण राजा नहीं , क्योंकि राज्य राज्य के लोग , न केवल इस्राएल के, उसकी आज्ञा मानेंगे | पद १० ब “राज्य के लोग उसकी आज्ञा मानेंगे |”

यह मसीह यीशु में पूरा हुआ | यीशु के क्रूस पर चढाए जाने तथा पुनरुत्थान के पश्चात स्वर्ग में यीशु की भूमिका के विषय में यहून्ना कहता है कि “ मत रो ! देख , यहूदा के कुल का वह सिंह जो यहूदा का मूल है, विजयी हुआ है, कि इस पुस्तक को और उसकी सात मुहरों को खोले ...और उन्होंने यह नया गीत गाया : ‘ तू इस पुस्तक के लेने और उसकी मुहरें खोलने के योग्य है , क्योंकि तू ने वध होकर अपने लहू से प्रत्येक कुल, भाषा और लोग और जाती में से परमेश्वर के लिए लोगों को मोल लिया है| और उन्हें परमेश्वर के लिए एक राज्य और याजक बनाया और वे पृथ्वी पर राज्य करेंगे’ “ (प्रकाशितवाक्य ५:५ ,९, १०)|

यहूदा का सिंह वह मेम्ना है जो वध हुआ

यहूदा के गोत्र के सिंह के विषय याकूब की नबूवत की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह हमारे अधर्म का हम पर दोष लगाने और उसके द्वारा हमें अधीन बनाने के द्वारा संसार के समस्त लोगों द्वारा आज्ञा पालन करने का दावा नहीं करता है, परन्तु हमारे अधर्म को उठाने और हमें सर्वदा उस से प्रेम करने , उसकी स्तुति करने और आज्ञा मानने के लिए स्वतंत्र करने के द्वारा है | यहूदा का सिंह वह मेम्ना है जो वध हुआ | वह हमारे पापों को क्षमा करने के द्वारा और उसकी अपनी आज्ञाकारिता , धर्मी जन के रूप में उसकी अपनी सिध्दता द्वारा, जो कि परमेश्वर की दृष्टि में हमारे ग्रहणयोग्य होने का आधार है, हमारे आज्ञापालन को जीतता है |

और असीम सुरक्षा तथा आनंद की इस दशा में जो की उसके दुख सहने और धार्मिकता और मृत्यु और पुनरुत्थान के कारण ही है | वह हमारे स्वैच्छिक तथा आनंदपूर्वक आज्ञापालन को प्राप्त करता है |

यूसुफ की कहानी उस धर्मी जन की है जिसके विरुध्द पाप किया गया और जो कष्ट भोगता है जिससे कि यहूदा का गोत्र सुरक्षित रहे और उसमे से एक सिंह निकले, और वह मेम्ना सदृश्य सिंह ठहरे , और उसके दुख उठाने और मृत्यु के द्वारा न समस्त जातियों के आनंद के साथ आज्ञापालन को मोल ले और शक्ति प्रदान करे – उन्हें भी जिन्होंने उसे वध किया था |

क्या आप उसकी आज्ञा मानते है ?