परमेश्वर के आधिपत्य के लिए धुन, भाग-1
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
By John Piper
About Christian Hedonism
Part of the series Passion 97
Translation by Desiring God
अनुक्रम |
कारण -1
मैं आरम्भ करना चाहता हूँ, आपको कुछ कारण बताते हुए कि मैं यहाँ क्यों हूँ। एक स्थानीय कलीसिया में 16 - 17 वर्षों तक पासवान् रहे आने का एक बड़ा लाभ ये है कि बीतते महीनों और वर्षों के साथ, कलीसिया का दर्शन और पासवान् का दर्शन एक हो जाता है । लगभग एक साल पहिले हमने एक दर्शन-बयान प्रस्तुत किया था जो इस प्रकार है :
सब लोगों के आनन्द के लिए, सभी बातों में परमेश्वर के आधिपत्य के लिए धुन को फैलाने के लिए, हम अस्तित्व में हैं।
मैं सोचता हूँ कि बिना किसी हिचकिचाहट के मैं कह सकता हूँ कि ये मेरा जीवन-लक्ष्य है और साथ ही साथ बैतलहम- बैप्टिस्ट-चर्च का लक्ष्य। अतः जब मुझे निमंत्रण मिला, इस सम्मेलन के बारे में पढ़ा, शब्द ‘‘धुन’’ को देखा, और यशायाह 26:8 के पीछे सच्चाई को देखा--‘‘हम लोग तेरी बाट जोहते आये हैं; तेरे नाम के स्मरण की हमारे प्राणों में लालसा बनी रहती है’’--मैं फँस गया।
मैं आप सब के और इस संसार के सब लोगों के आनन्द के लिए, सभी बातों में परमेश्वर के आधिपत्य के लिए एक धुन को फैलाना चाहता हूँ। अतः ये कारण संख्या एक है, कि मैं यहाँ क्यों हूँ।
कारण -2
कारण संख्या दो ये है कि मैं आपके आनन्द को प्रदीप्त करने में एक माचिस की तीली बनना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि परमेश्वर में रोमांचित और आनन्दित होकर, आप इस जगह से जायें।
कारण -3
और तीसरा कारण है कि मैं चाहता हूँ कि आप धर्म-शास्त्र में से देखें कि कारण संख्या एक और कारण संख्या दो, दोनों समान कारण हैं। वे एक हैं। अर्थात्, परमेश्वर के आधिपत्य के लिए एक धुन को फैलाना और परमेश्वर में सुखी रहना, यर्थाथ में अभिन्न हैं। क्योंकि परमेश्वर आप में सर्वाधिक महिमित होता है जब आप ‘उस’ में सर्वाधिक सन्तुष्ट होते हैं।
एक वाक्य है जिस पर मैं बार-बार लौटूंगा परमेश्वर आप में सर्वाधिक महिमित होता है जब आप ‘उस’ में सर्वाधिक सन्तुष्ट होते हैं। अतः वे गीत जो हम गा रहे थे और वो प्यास जो हम व्यक्त कर रहे थे, परमेश्वर को महिमा देने के तरीके हैं। क्योंकि जितना अधिक हम ‘उस’ में सन्तुष्टि पाते हैं, उतनी ही अधिक गहराई से हम ‘उस’ में से पीते हैं और उस भोज की मेज से खाते हैं जो ‘वह’ स्वयँ है, उतना ही अधिक ‘उस’ का मूल्य और ‘उस’ की सर्व-पर्याप्ति आवर्धित होती है। अतः कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है--ये मेरे लिए वो अचरज है, मेरे लिए वो सुसमाचार है जो मैंने ‘68, ‘69 और ‘70 में खोजा, जब परमेश्वर मेरे जीवन में एक काम कर रहा था। महिमित होने के लिए परमेश्वर की धुन, और सन्तुष्ट होने के लिए आपकी धुन में, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है, क्योंकि वे एक हैं।
इस तीसरे कारण को कि मैं यहाँ क्यों हूँ, कहने का एक और ढंग है : मैं यहाँ हूँ कि एक हिमनदी में मशाल जला दूँ। मेरे दिमाग में एक तस्वीर है। यह मत्ती 24 में से निकली। मत्ती 24: 12 में, युग के अन्त को देखते हुए, यीशु कहते हैं : ‘‘अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।’’ मैं ठण्डा पड़ने से, मृत्यु के समान भयभीत हूँ। मैं इस विचार से घृणा करता हूँ कि परमेश्वर के लिए मेरा प्रेम अथवा लोगों के लिए मेरा प्रेम एक दिन सूख जावे या जम जावे। फिर भी यीशु कहते हैं ‘‘ये आ रहा है!’’ ये एक हिमनदी के समान सारे संसार में आ रहा है। अतः अन्त के दिनों के लिए मेरी उम्मीद का एक हिस्सा ये है कि अधर्म बहुत बढ़ता जायेगा और ये कि बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा। अब, अन्त के दिनों का यह एक बहुत रूखा विवरण हो सकता है। किन्तु यदि आप मत्ती में, नीचे एक पद 13 तक पढ़ते जायें, ये कहता है, ‘‘परन्तु जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा’’--अतः कोई व्यक्ति धीरज धरने वाला है। और अगला पद कहता है, ‘‘और राज्य का यह सुसमाचार’’--उसकी व्याख्या कीजिये, ‘‘राजा यीशु के आधिपत्य के लिए एक धुन को फैलाने का ये सुसमाचार--‘‘राज्य का ये सुसमाचार, सब जातियों में एक साक्षी के रूप में प्रचार किया जावेगा, और तब अन्त आ जायेगा।’’ अब पद 12 को पद 14 के बाजू में रखिये और देखिये कि क्या आप तनाव महसूस करते हैं। ‘‘अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।’’ किन्तु, ‘‘राज्य का यह सुसमाचार’’--मसीह के प्रभुसत्ता-सम्पन्न शासन का--‘‘सब जातियों में फैल जावेगा और तब अन्त आ जायेगा।’’
अब, उन दो आयतों के बीच एक तनाव है। कारण कि मैं जानता हूँ कि ये है, इसलिए कि वे लोग ठण्डे नहीं हैं जो सुसमाचार को वापिस आपके आहाते/कैम्पस में ले जाने वाले हैं। ये ठण्डे लोग नहीं हैं जो इसे संसार के, सुसमाचार न पाये हुए, लोगों तक इसे पहुँचाने वाले हैं। अब, मैं वो कैसे जानता हूँ ? क्योंकि यदि आप वापिस दो आयतों, पद 9 तक जायें, आप एक भविष्यसूचक वचन में कुछ पायेंगे जो कि बहुत-बहुत भिन्न है। ये कहता है, ‘‘तब वे क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएंगे और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे,’’ यीशु कहते हैं। अब, यदि ये सच है--यदि हम अपने सुसमाचार-प्रचार की मजदूरी में अधिकारियों को सौंपे जायेंगे, यदि हम मार डाले जायेंगे, यदि हम प्रत्येक जाति के द्वारा घृणा किये जायेंगे जिनमें हम जायेंगे--मैं एक बात निष्चित जानता हूँरू ये ठण्डे लोग नहीं हैं जो वो संदेश दे रहे हैं। ये, राजा यीशु के, श्वेत-तप्त आराधक हैं, जो उस को पूरा करेंगे। इसलिए, मत्ती 24 की 9 से 14 आयतों में मैं जो देखता हूँ वो ये कि, जैसे-जैसे युग का अन्त निकट आ रहा है, ऐसे लोग होने जा रहे हैं जो बर्फीले ठण्डे होते जा रहे हैं और ऐसे लोग होने जा रहे हैं जो पर्याप्त लाल-गर्म हैं कि संसार के सब लोगों के मध्य, यीशु के लिए अपनी जान दे दें।
अतः बैतलहम बैप्टिस्ट चर्च में मेरी सेवकाई और मेरा यहाँ आगमन, एक हिमशिला में आग लगाना है। एक बार मैंने ये तस्वीर अपने चर्च में दी, और 6-7 साल की एक छोटी लड़की, सभा समाप्त होने पर मेरे पास आयी--मैं अपने चर्च में बच्चों को प्रोत्साहित करता हूँ कि मेरे उपदेश के चित्र बनायें--और उसने कहा, ‘‘ये है जो मैंने देखा।’’ उसने एक अद्भुत हिमशिला बनायी था जिस पर मीनियापोलिस लिखा था, इसमें छोटी छड़ी लिये हुए एक आदमी भी था जो एक मशाल थामे हुए था और ऊपर, हिमशिला में एक छिद्र था। इसके ऊपर, उस छिद्र में से नीचे आती हुई, सूरज की बहुत सी रोशनी थी।
अब, यहाँ संक्षिप्त में मेरा युगान्त-विज्ञान है। यदि आप समझना चाहते हैं कि जब यीशु आते हैं तो आपका आहाता किस प्रकार का दिखने वाला है, या ऑस्टिन या मीनियापोलिस, या जहाँ से भी आप आयें हैं वो कैसा दिखने वाला है हिमशिला खिसक रही है, और बहुत से लोग परमेश्वर के प्रति ठण्डे पड़ रहे हैं--सूख रहे हैं--जम रहे हैं--लेकिन अन्त के समयों के बारे में बाइबल में ऐसा कुछ नहीं है जो कहता है कि ‘‘बैतलहम बैप्टिस्ट चर्च’’, या यहाँ तक कि ‘‘मीनियापोलिस’’ या कहिये, ‘‘ऑस्टिन के टेक्सास विश्वविद्यालय को उस हिमशिला के नीचे आना है।’’ कुछ भी नहीं ! यदि परमेश्वर के लिए श्वेत-तप्त जलती मशालों के साथ पर्याप्त लोग हों, जो हिमशिला में मशाल लगा रहे हों, तो आपके कैम्पस के ऊपर, आपके चर्च के ऊपर, और यहाँ तक कि आपके शहर के ऊपर, एक बड़ा छिद्र खुल जायेगा। और इसी कारण मैं यहाँ हूँ मैं अपनी मशाल ऊपर उठाना चाहता हूँ।
लगभग सौ साल पूर्व, ‘स्पर्जन’ सारे इंगलैण्ड में कहा करते थे, जब उन्होंने ‘मैर्टोपोलिटन टैबरनेकल’ में प्रचार किया, ‘‘लोग मुझे जलता हुआ देखने के लिए आते हैं।’’ वे आते हैं कि अपनी टिमटिमाती हुई छोटी मशाल लायें और मेरी मशाल से चिपकायें और बाहर जाकर एक और सप्ताह के लिए, यीशु के लिए जलें। मैं गद्गद हो जाऊंगा यदि आज सुबह आप एक टिमटिमाती हुई मशाल यहाँ लाये हैं और इसे मेरी अग्नि में डालते हैं। इसी लिए मैं यहाँ हूँ।
इस संदेश का उद्देश्य : एक नींव बनाना
जो मैं करना चाहता हूँ उसके लिए एक नींव है। यहाँ मेरा काम है, परमेश्वर की महिमा के लिए जीवित रहने, परमेश्वर की महिमा के लिए एक धुन होने, के बारे में बात करना। मेरे पास दो संदेश हैं आज सुबह और कल सुबह। आज सुबह नींव है और कल सुबह इसका अनुप्रयोग।
नींव ये हैरू सब बातों में परमेश्वर के आधिपत्य के लिए आपकी धुन, सीधे, सब बातों में आधिपत्य के लिए परमेश्वर की धुन, पर आधारित है। आपकी परमेश्वर-केन्द्रता--यदि ये बनी रहने वाली है--परमेश्वर की परमेश्वर-केन्द्रता में जड़ पकड़े होनी चाहिए। यदि आप चाहते हैं कि आपकी जिन्दगी में परमेश्वर सर्वोच्च रहे, आपको देखना, और विश्वास करना, इस सच से प्रेम करना होगा कि परमेश्वर के जीवन में परमेश्वर सर्वोच्च है। यदि आप चाहते हैं कि परमेश्वर आपके धन रहे-- जैसा कि हमने अभी यहाँ गाया--ताकि आप किसी भी चीज से बढ़कर परमेश्वर का मूल्य जानें, आपको देखना और विश्वास करना होगा कि परमेश्वर का धन परमेश्वर है, और यह कि किसी और चीज से बढ़कर जिसे ‘वह’ बहुमूल्य समझता है, ‘वह’ परमेश्वर को बहुमूल्य समझता है। हम विश्व के उच्चतम आनन्द को परमेश्वर को देने से इन्कार न करें, यथा, परमेश्वर की आराधना। वो नींव हैय वही है जिसके बारे में मैं आज बात करना चाहता हूँ।
और फिर कल, मैं परमेश्वर में आपके आनन्द के लक्ष्य के बारे में बात करना चाहता हूँ और यह कि ये लक्ष्य आवष्यक रूप से, आपके जीवन में ‘उसकी’ महिमा के, परमेश्वर के लक्ष्य में, समाविष्ट है।
परमेश्वर 'उसकी' महिमा के लिए धुन से भरा है
आइये हम एक छोटी कहानी से आरम्भ करें मैं, ‘व्हीटन’ काॅलेज--मेरा अपना महाविद्यालय--में लगभग 8 या 9 साल पहिले, बोला। इस बड़े, झाड़-फानूस से सजे, नीले, सुन्दर प्रार्थनालय में ये मेरा पहिला अवसर था। और, मैं खड़ा हुआ, और मैंने कहा, ‘‘परमेश्वर का प्रमुख लक्ष्य है, परमेश्वर को महिमित करना और सदा के लिए ‘उसका’ आनन्द उठाना।’’ और मेरे सभी मित्र जो ऊपर बालकनी में थे कह उठे, ‘‘ओह नहीं, उसने बीस साल बाद आकर अपने स्वयँ के महाविद्यालय में इन छात्रों से बोलने के अपने पहिले ही अवसर में, कबाड़ा कर दिया, और वह वैस्टमिनिस्टर कैटिकिज़्म (धर्मशिक्षा)का पूरी तरह गलत उद्धरण देता है और ‘मनुष्य का प्रमुख लक्ष्य’ की बनिस्बत ‘परमेश्वर का प्रमुख लक्ष्य’ कहता है।’’’ और उनकी बड़ी राहत के लिए मैं कहता गया, ‘‘मेरा वास्तव में वही अर्थ है।’’ और इस सुबह वास्तव में मेरा यही कहना है परमेश्वर का प्रमुख लक्ष्य है, परमेश्वर को महिमित करना और सदा के लिए ‘उसका’ आनन्द उठाना।
मैं एक सुसमाचार-प्रचारक के घर में पला-बढ़ा हूँ। मेरे पिता, ‘बिल पाइपर’ ने, जब मैं छोटा सा ही था, 1 कुरिन्थियों 10: 31 पद सिखाया ‘‘सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो।’’ लेकिन मैंने किसी को ये कहते हुए नहीं सुना कि परमेश्वर, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करता है। और यह कि परमेश्वर की महिमा के लिये मेरे जीने की जड़ ये है कि परमेश्वर, परमेश्वर की महिमा के लिये जीता है।
मैंने संडे-स्कूल का कोई पर्चा जो घर लाया गया हो, कभी नहीं देखा जो ये कहता है, ‘‘परमेश्वर तुम से जितना प्रेम करता है, उस से अधिक स्वयँ से प्रेम करता है, और वहीं पर मात्र ये आशा पायी जाती है कि ‘वह’ आप से, अयोग्य जैसे कि आप हैं,, प्रेम कर सके।’’ संडे-स्कूल के किसी पर्चे में वो कभी नहीं पढ़ा, वही कारण है कि बैतलहम बैपटिस्ट चर्च में हम पाठ्य-क्रम पर काम कर रहे हैं। हम में से अधिकांश घरों में, और कलीसियाओं में पले-बढ़े हैं, जहाँ हम मसीही होने के बारे में इस अंश तक उत्तेजित हो गए कि हमने सोचा कि परमेश्वर हमारे बारे में उत्साहित था, उस अंश तक नहीं जितना हम एक परमेश्वर-केन्द्रित परमेश्वर के बारे में उत्साहित हुए।
एक मनुष्य-केन्द्रित संसार में, जहाँ स्वयँ पर अभिमान सर्वोच्च मूल्य है, इस अंश तक एक मसीही होना बहुत सरल है, कि परमेश्वर के बिना, आपने किसी भी तरह जो भी किया हो, ये उसे सहारा देता है। कौन मसीही नहीं रहेगा ? हाँ, आप एक मसीही नहीं हैं यदि आप केवल उस से प्रेम करते हैं जिस से आपने, एक परमेश्वर-केन्द्रित परमेश्वर की सुन्दरता से सामना हुए बिना, प्रेम किया होता। यदि परमेश्वर आपकी स्व-उन्नति और ऊँचा उठने का मात्र एक माध्यम है, बनिस्बत इसके कि आपने ‘उसमें’ कुछ असीम महिमित देखा होता, एक ऐसे परमेश्वर के रूप में जो अपनी महिमा के प्रगटीकरण में लिप्त है, तब आपको आपके मन-परिवर्तन को जाँचने की आवश्यकता है। अतः, यहाँ ऑस्टिन में ‘पैशन-97’ में, एक बड़ी वास्तविक जाँच है। बहुत कम लोगों ने कभी मुझसे कहा या मुझे दिखाया है, जो अब मैंने बाइबल में देखा है, कि परमेश्वर ने मुझे ‘उसकी’ महिमा के लिए चुना है।
1976 में, इफिसियों 1 पर एक कक्षा में शिक्षण देना, उसमें, जिसे बेथेल काॅलेज में उन दिनों में हम ‘‘अन्तरिम-काल ’’ (‘‘इन्टरिम’’)कहते थे, क्रमबद्ध रूप से इफिसियों की 14 आयत तक बढ़ना और मेरे संसार का पुनः खिल उठना, मुझे स्मरण है। क्योंकि तीन बार--पद 6, 12, और 14--ये कहता है कि ‘उस’ ने हमें जगत की उत्पत्ति से पहिले ‘उस’ में चुन लिया और पहिले से ठहराया कि हम ‘उसके’ पुत्र हों, ताकि उसके अनुग्रह की महिमा की स्तुति हो।
‘उसने’ आपको चुना। क्यों ? ताकि ‘उसकी’ महिमा और अनुग्रह की स्तुति हो और बढ़े। आपका उद्धार, परमेश्वर को महिमा देने के लिए है। आपका चुना जाना, परमेश्वर को महिमा देने के लिए है। आपका पुन-रुज्जीवन, परमेश्वर को महिमा देने के लिए था। आपको निर्दोष ठहराया जाना परमेश्वर की महिमा के लिए था। आपका पवित्रीकरण, परमेश्वर की महिमा के लिए है। और एक दिन आपकी महिमा-प्राप्ति, परमेश्वर की महिमा में अवशोशित हो जावेगी।
आप परमेश्वर की महिमा के लिए सृजे गए थे |
यशायाह 43: 6, 7:‘‘मेरे पुत्रों को दूर से और मेरी पुत्रियों को पृथ्वी के छोर से ले आओ; हर एक को जो मेरा कहलाता है, जिसको मैं ने अपनी महिमा के लिये सृजा है।’’
परमेश्वर ने मिस से 'उसकी' प्रजा इस्राएल को, 'उसकी' महिमा के लिए छुड़ाया |
‘‘मिस्र में हमारे पुरखाओं ने तेरे आश्चर्यकर्मों पर मन नहीं लगाया, न तेरी अपार करुणा को स्मरण रखा य उन्हों ने समुद्र के तीर पर, अर्थात् लाल समुद्र के तीर पर बलवा किया। तौभी उस ने अपने नाम के निमित्त उनका उद्धार किया, जिस से वह अपने पराक्रम को (और महिमा को)प्रगट करे।’’ भजन संहिता 106: 7, 8।
दूसरे शब्दों में, ‘उसने’ लाल समुद्र को दो भाग किया और अपने बलवा करने वाले लोगों का उद्धार किया, ताकि ‘वह’ अपनी पराक्रमी सामथ्र्य प्रगट करे। और ये यरीहो तक फैलती चली गयी और एक वेश्या का उद्धार किया, ताकि जब वे वहाँ पहुँचे और तुरहियाँ बजाने को तैयार हुए, उसने नया जन्म पाया क्योंकि उसने कहा, ‘‘हमने तेरा नाम और तेरी कीर्ति सुनी है।’’ और एक स्त्री और उसके परिवार ने, एक परमेश्वर-केन्द्रित परमेश्वर में विश्वास किया और विनाश से बच गए।
परमेश्वर ने जंगल में इसाएल पर दया, 'उसकी' महिमा के लिए की |
परमेश्वर ने जंगल में इस्राएल को बार-बार क्षमा किया। ‘‘इस्राएल के घराने ने जंगल में मुझ से बलवा किया,’’ परमेश्वर को उद्धृत करते हुए, यहेजकेल कहता है, ‘‘और मैंने कहा, मैं अपनी जलजलाहट उण्डेलूंगा, परन्तु मैंने अपने नाम के निमित्त ऐसा किया ताकि वे उन जातियों के सामने अपवित्र न ठहरें।’’ और तब अन्ततः परमेश्वर दण्ड-स्वरूप उन्हें बाबुल में भेजता है, और 70 साल के बाद उन पर दया होती है। ‘वह’ अपनी वाचा की दुल्हिन को तलाक नहीं देगा और ‘वह’ उन्हें वापिस ले आता है। लेकिन क्यों ? परमेश्वर के हृदय में क्या ध्येय बसा हुआ है ?
यशायाह 48 से इसे सुनियेरू ‘‘अपने ही नाम के निमित्त मैं क्रोध करने में विलम्ब करता हूं, और अपनी महिमा के निमित्त अपने तईं रोक रखता हूं, ऐसा न हो कि मैं तुझे काट डालूं। देख, मैं ने तुझे निर्मल तो किया, परन्तु, चान्दी की नाईं नहीं: मैं ने दुःख की भट्टी में परखकर तुझे चुन लिया है। अपने निमित्त, हां अपने ही निमित्त मैं ने यह किया है, मेरा नाम क्यों अपवित्र ठहरे ? अपनी महिमा मैं दूसरे को नहीं दूंगा।’’ दया के लिए, वो परमेश्वर-केन्द्रित अभिप्राय है।
परमेश्वर की महीमा के लिए. यीशु आये और मर गये |
यीशु संसार में किस कारण से आये ? ओ, कितनी बार हमने यूहन्ना 3: 16 को उद्घृत किया है। और ये चमत्कारपूर्ण ढंग से सच है। और इसके पूर्व कि आज सुबह हम समाप्त करें, या कम से कम कल सुबह, आप देखेंगे कि अभी ये जोर देना और वो जोर देना, जो आप सम्भवतः लम्बे समय से जानते हैं, एक-दूसरे से विषम नहीं हैं।
लेकिन ‘वे’ क्यों आये ? यीशु क्यों आये ? रोमियों 15: 8 के अनुसार, ‘वे’ इस कारण से आये: ‘‘जो प्रतिज्ञाएं बापदादों को दी गई थीं, उन्हें दृढ़ करने के लिये मसीह, परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिये खतना किए हुए लोगों का सेवक बना और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की बड़ाई (महिमा)करें ।’’ मसीह पृथ्वी पर आये, स्वयँ पर मांस धारण किया, और मर गए ताकि आप दया के लिए ‘उसके’ पिता की महिमा दे सकें। ‘वह’ अपने पिता की खातिर आया। यही प्रमुख कारण है कि ‘वे’ आये, ‘उसके’ पिता की महिमा के लिये। और यह महिमा, दया के उमड़ने में, अपने सर्वोच्च शिखर तक पहुंचती है।
रोमियों 3 से इस वचन को सुनिये: ‘‘परमेश्वर ने मसीह को उसके लोहू के द्वारा एक प्रायश्चित के रूप में सामने लाया कि परमेश्वर की धार्मिकिता प्रगट हो। ये वर्तमान समय में ये प्रमाणित करने के लिए था कि वह स्वयं धार्मिक है। इसी कारण वह मरा। वह परमेश्वर की धार्मिकता को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए मरा, जिसने ऐसे पापों से आनाकानी की (पापों को लांघ गया)जैसे कि दाऊद का व्यभिचार और हत्या।’’ क्या इसने कभी आपको परेशान किया है परमेश्वर ने इसे अनदेखा किया और दाऊद ने राजा बने रहना जारी रखा ? हां, इसने पौलुस को उसकी अन्र्तात्मा की गहराई तक परेशान किया कि पापों को अनदेखा करने में परमेश्वर धार्मिक नहीं है। और ये मात्र दाऊद नहीं था। पुराना नियम में हजारों भक्त रहे हैं और आज भी, जिनके पाप ‘वह’ सरलता से भुला देता और अनदेखा करता है। और पौलुस चिल्ला उठा, ‘‘आप परमेश्वर होते हुए ऐसा कैसे कर सके ? आप धार्मिक होते हुए वो कैसे कर सके ? आप न्यायी होकर वो कैसे कर सके ? आप आराधना के योग्य होकर वो कैसे कर सके ?’’--यदि ‘ऑस्टिन’ में किसी न्यायाधीश ने ऐसा किया होता, यदि उसने एक बाल- दुरुपयोग करने वाले, एक बलात्कारी, एक हत्यारे को दोषमुक्त कर दिया होता, वह एक मिनिट में अपने पद से हटा दिया जाता,--‘‘और आप ये प्रतिदिन करते हैं, तो आप किस प्रकार के परमेश्वर हैं ?’’
क्रूस, एक महा-धर्मविज्ञानी समस्या का समाधान है, यथा, परमेश्वर कैसे परमेश्वर होते हुए पापों को क्षमा कर सकता है ? मसीह आया कि आप जैसे व्यक्ति को बचाने में परमेश्वर को दोषमुक्त करे। उद्धार, भव्य रूप से और चमत्कारपूर्ण ढंग से परमेश्वर-केन्द्रित चीज है।
यीशु महिमा पाने के लिये वापिस आ रहे हैं |
‘वे’ पुनः क्यों आ रहे हैं ? साथियो, यीशु आ रहे हैं, ‘वे’ आ रहे हैं। और मैं आपको बता दूँ कि ‘वे’ क्यों आ रहे हैं और जब ‘वे’ आते हैं तक आप क्या कर सकते हैं, ताकि आप तैयार रहें और इसे करें।
2 थिस्सलुनीकियों 1: 9 : ‘‘वे जो सुसमाचार को नहीं मानते, प्रभु के सामने से, और उसकी शक्ति के तेज से दूर होकर अनन्त विनाश का दण्ड पायेंगे, जब ‘वह’ उस दिन, अपने पवित्र लोगों में महिमा पाने और सब विश्वास करने वालों में आश्चर्य का कारण होने को आयेगा।’’ आप इन दो चीजों को देखते हैं ? ‘वे’ आ रहे हैं कि अपने भक्तों में महिमा और बड़ाई पायें, और आश्चर्य का कारण हों। यदि आप अभी उस पर आरम्भ नहीं करते हैं, तो जब ‘वे’ आयेंगे आप इसे नहीं कर पायेंगे।
ये सम्मेलन विद्यमान है कि आपकी हड्डियों में एक आग लगा दे और आपके दिमाग और हृदयों में एक आग भड़का दे कि राजा यीशु से मिलने के लिए आपको तैयार करे, ताकि सारे सनातन काल में आप वो करना जारी रख सकें जिसे करने के लिए ‘उसने’ आपको सृजा है, यथा, ‘उस’ पर आश्चर्य करने और ‘उसकी’ बड़ाई करने।
हमें परमेश्वर को टेलिस्कोप के सामान बड़ा करना चाहिए
‘उसे’ बड़ा बनाइये, किन्तु माइक्रोस्कोप के समान नहीं। दो प्रकार के आवर्धन के बारे में आप जानते हैं, क्या नहीं जानते ? एक, टेलिस्कोप से बड़ा करना और दूसरा माइक्रोस्कोप से बड़ा करना है, और परमेश्वर को एक माइक्रोस्कोप के समान बड़ा बनाना, निन्दा है। परमेश्वर को माइक्रोस्कोप के समान बड़ा बनाना ऐसा है मानो कुछ सूक्ष्म लिया जावे और इसे उससे बड़ा करके दिखाया जावे जितना कि वो है। यदि आप परमेश्वर के साथ वैसा करने का प्रयास करते हैं, आप निन्दा करते हैं। किन्तु एक टेलिस्कोप अपने लैंसों को विशालता के अकल्पनीय विस्तार पर रखती है और उन्हें, जैसे वे हैं वैसा दिखाने में सहायता करने का मात्र प्रयास करती है। एक टेलिस्कोप इसी के लिए है।
ट्न्विकल, ट्न्विकल लिटिल स्टार--आप रात्रि में ऊपर देखते हैं और वे सुई की नोक के समान दिखते हैं। वे ऐसे नहीं हैं। आप उसे जानते हैं, आप काॅलेज में हैं, सही है ? वे बड़े हैं। वे वास्तव में बहुत बड़े हैं, और वे गरम हैं ! और आप के पास इसके सिवाय कोई सुराग नहीं है कि एक समय किसी ने एक टेलिस्कोप का अविष्कार किया, अपनी आँख वहाँ रखी, और उन्होंने सोचा, ‘‘ये पृथ्वी से बड़ा है, पृथ्वी से लाखों गुना बड़ा।’’ परमेश्वर ऐसा ही है। आपका जीवन इसलिए विद्यमान है कि आप अपने अहाते/कैम्पस में परमेश्वर की महिमा को आवर्धित करें। ये एक बड़ी बुलाहट है। कैसे ? इसके बारे में मैं कल बात करूँगा।
यदि परमेश्वर, परमेश्वर केन्द्रित है, 'वह' कैसे प्रेम करने वाला हो सकता है ?
यहाँ वो मुख्य प्रश्न है जिसके साथ मैं समाप्त करना चाहता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि वो यहाँ उठना आरम्भ होता है। मैंने ये सत्य कहा है, कि परमेश्वर, एक परमेश्वर-केन्द्रित परमेश्वर है और ये कि ‘उसकी’ परमेश्वर-केन्द्रतता, मेरे परमेश्वर-केन्द्रतता की जड़ है। मैंने बीस साल तक लोगों से वो कहा है, और प्रश्न उठना आरम्भ होता हैरू ‘‘ये प्रेममय ध्वनित नहीं होता, क्योंकि 1 कुरिन्थियों 13: 5 में बाइबल कहती है, ‘‘प्रेम अपनी भलाई नहीं चाहता।’ और आप हमें अभी पिछले पन्द्रह मिनिट से कह रहे हैं, कि परमेश्वर अपना सारा समय अपनी भलाई ढूंढने में खर्च करता है। अतः या तो परमेश्वर प्रेमी नहीं है या आप एक झूठे हैं।’’ और ये एक बड़ी समस्या है। अतः मुझे उत्तर देने का प्रयास करने दीजिये कि ये कैसे है कि परमेश्वर अपने स्वयँ को ऊंचा उठाने की खोज में, प्रेममय है।
सी. एस. लेविस से सहायता
मैंने इसकी कुंजी सी.एस. लेविस में पायी। यदि आप में से किसी ने डिजायरिंग गाॅड पढ़ी है, तब आपको ये उद्धरण याद होगा। लेविस 28-29 की उम्र तक एक मूर्तिपूजक था और वह परमेश्वर की व्यर्थता से घृणा करता था। उसने कहा कि हर समय जब उसने भजन संहिता के इन वचनों को पढ़ा, ‘‘यहोवा की स्तुति करो, यहोवा की स्तुति करो’’--और वह मसीही धर्म-शिक्षा जानता था, कि भजन प्रेरणा से लिखे गये थे--वह जानता था कि ये वास्तव में परमेश्वर कह रहा है, ‘‘मेरी स्तुति करो, मेरी स्तुति करो’’ और ये ऐसा ध्वनित होता था मानो कोई बूढ़ी स्त्री प्रशंसा की खोज कर रही हो। ये रिफलेक्षनस् ऑन द साम्स से एक उद्धरण है। और तब अचानक परमेश्वर, सी.एस. लेविस के जीवन में आये। और ये है वो जो उसने लिखा :
स्तुति के बारे में सर्वाधिक स्पष्ट तथ्य, चाहे परमेश्वर की या किसी और की, आश्चर्यजनक रूप से मुझसे छुपी रही। मैंने इसके बारे में, प्रशंसा, अनुमोदन, सम्मान देने के अर्थों में सोचा। मैंने कभी ध्यान नहीं दिया था कि स्तुति में सब प्रकार का आनन्द आप से आप ही उमण्ड़ता है, जब तक कि कभी-कभी हम इसे रोकने के लिए लज्जा को न ले आयें। संसार स्तुति से गूंजता हैरू प्रेमी अपनी प्रेमिका की प्रशंसा करते हैं, पाठक अपने मन-पसन्द कवियों की, टहलने वाले प्राकृतिक दृश्यों की प्रशंसा करते हैं, खिलाड़ी उनके पसन्द के खेलों की प्रशंसा करते हैं, मौसम, वाइन्स, व्यंजनों, अभिनेताओं, घोड़ों, काॅलेजों , देशों, ऐतिहासिक व्यक्तित्वों, बच्चों, फूलों, पर्वतों, दुर्लभ टिकटों, दुर्लभ भृंगों, यहाँ तक कि कभी-कभी राजनीतिञों और विद्वानों की प्रशंसा । परमेश्वर की प्रशंसा के साथ मेरी सम्पूर्ण सामान्य कठिनाई, हम से बेतुके रूप से नकारने पर निर्भर थी, जहाँ तक सर्वोच्च रूप से मूल्यवान् की बात है, हम क्या करने में आनन्दित होते हैं--यहाँ तक कि हम जिसे कर नहीं सकते--उस हर एक चीज के बारे में जिसकी हम कद्र करते हैं।
और अब मूल-भाव के वाक्य ये हैं :
मैं सोचता हूँ कि हम जिस चीज का आनन्द लेते हैं उसकी प्रशंसा करने में प्रसन्न होते हैं, क्योंकि आनन्द तब तक पूर्ण नहीं है जब तक कि इसे व्यक्त न किया जावे। ये अभिनन्दन में से नहीं है कि प्रेमीगण एक-दूसरे से कहते रहते हैं कि वे कितने सुन्दर हैं। प्रसन्नता अधूरी है, जब तक कि इसे व्यक्त न किया जावे।
अब, मेरे लिये वो एक कुंजी थी जिसने कुछ इससे सम्बन्धित खोल दिया कि परमेश्वर, जो कुछ ‘वो’ करता है, उसमें कैसे प्रेममय और स्वयँ को ऊंचा करने वाला हो सकता है। यह इस प्रकार से है। आइये, मैं आपके लिए टुकड़ों को जोड़ दूँ।
प्रश्न का उत्तर
यदि परमेश्वर को आपसे प्रेम करना है, ‘उसे’ आपको क्या देना चाहिए ? ‘उसे’ आपको वो देना चाहिए जो आपके लिए सर्वोत्तम है। सारे विश्व में सबसे अच्छी चीज है, परमेश्वर। यदि ‘वह’ आपको भरपूर स्वास्थ्य, सर्वोत्तम नौकरी, सर्वोत्तम जीवन-साथी, सर्वोत्तम कम्पयूटर, सर्वोत्तम छुट्टियाँ, किसी भी क्षेत्र में सर्वोत्तम सफलता देता और फिर भी स्वयँ को न देता, तब ‘वह’ आपसे घृणा करता होता। और यदि ‘वह’ आपको ‘परमेश्वर’ देता है और इससे हटकर कुछ भी नहीं, ‘वह’ आपसे असीम प्रेम करता है।
मेरे सुख के लिए मेरे पास परमेश्वर होना चाहिए, यदि परमेश्वर मेरे प्रति प्रेममय रहने वाला है तो। अब, लेविस ने कहा है कि यदि परमेश्वर आपको, सारे अनन्तकाल में सुख पाने के लिए, अपने आप को दे देता है, तो वह आनन्द कभी भी उत्कर्ष तक नहीं पहुँचेगा, जब तक कि आप इसे प्रशंसा/स्तुति में व्यक्त न कर दें। इसलिए, आपको पूर्ण रीति से प्रेम करने के लिए, परमेश्वर इस बारे में उदासीन नहीं हो सकता कि आप स्तुति के द्वारा अपने आनन्द को उत्कर्ष तक लाते हैं या नहीं। इसलिए, परमेश्वर को आपकी स्तुति की खोज में रहना अवश्य है, यदि ‘उसके’ द्वारा आपको प्रेम किया जाना है। क्या ये सार्थक लगता है ? मुझे संदेह है कि मुझे ये आपके समक्ष दोहराना पडे़गा। मेरे जीवन का सार-तत्व यही है। मुझे विश्वास है कि बाइबल का सार-तत्व यही है।
प्रेम करने के लिए, ‘उसे’ आपको वो देना अवश्य है जो आपके लिए सर्वोत्तम है। आपके लिए जो सर्वोत्तम है, वो परमेश्वर है। ‘‘तू मुझे जीवन का रास्ता दिखाएगा य तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दाहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है’’ (भजन 16: 10)। हमारे सुख के लिए परमेश्वर स्वयँ को हमें देता है। लेकिन लेविस ने हमें दिखाया है कि जब तक ये
सुख, परमेश्वर की स्तुति में अभिव्यक्ति न पायें, तो ये सुख सीमित हैं। और इसलिए परमेश्वर, आपके सुख को किसी भी तरह सीमित करने की चाह न रखते हुए, कहता है, ‘‘मेरी स्तुति करो। हर एक काम जो तुम करते हो उसमें, मेरी स्तुति करो। हर चीज जो तुम करते हो, उसमें मेरा नाम ऊंचा उठाओ। हर काम जो तुम करते हो, उसमें मेरे आधिपत्य के लिए धुन रखो,’’ जिसका सरलता से अर्थ है कि महिमित होने के लिए परमेश्वर की धुन और आनन्द करने के लिए और सन्तुष्ट होने के लिए आपकी धुन, एक-दूसरे से विषम नहीं हैं। वे एक साथ आते हैं। परमेश्वर आप में सर्वाधिक महिमित होता है जब आप ‘उस’ में सर्वाधिक सन्तुष्ट होते हैं।
अब, आज सुबह की बातचीत का यह अन्त है। मैं आपको बता दूँ कि इसके साथ हम कल कहाँ जा रहे हैं, ताकि आप इस दिशा में प्रार्थना कर सकें, और ताकि आप आ सकें, जिसकी मैं आशा करता हूँ, और मुझे समाप्त करने दें, क्योंकि मैंने समाप्त नहीं किया है। यदि ये सच है, कि परमेश्वर आप में सर्वाधिक महिमित होता है जब आप ‘उस’ में सर्वाधिक सन्तुष्ट होते हैं--और इसलिए ‘उस’ में आपका सन्तोष और, ‘उसका’ आप में महिमित होने में, कोई तनाव या विरोधाभास नहीं है--तब आपके जीवन का व्यवसाय, आपके सुख का पीछा करना है। मैं इसे मसीही सुखवाद कहता हूँ, और मैं कल इस बारे में आप से बात करना चाहता हूँ कि आप इसे कैसे करें और क्यों ये आपके सम्बन्धों को, आपके आहातों, आपकी आराधना, और आपके सनातनकाल को रूपान्तरित कर देगा।